________________ 20963605600 00000000000000000 060 PORNER Cht8.0.0000000007 300020G AND | जन-मंगल धर्म के चार चरण 599 सामिष भोजन करने वाले व्यक्तियों में हिंसा और क्रूरता की प्रवृत्ति मांस की खपत को कम करें, ताकि उनका स्वास्थ्य अच्छा रहे। डॉ. अधिक पाई जाती है। गत दिनों ग्वालियर जेल में किए गए एक गुप्ता ने कहा कि मैं पूरे वैज्ञानिक आत्मविश्वास के साथ कह सर्वेक्षण के अनुसार जब कैदियों को सामिष भोजन के स्थान पर सकता हूँ कि इस समय संसार में व्याप्त भुखमरी का एक प्रमुख निरामिष भोजन दिया गया तो उनके व्यवहार में इस प्रकार का कारण योजनाबद्ध मांसाहार है। इसके तर्क में उन्होंने कहा कि स्पष्ट परिवर्तन पाया गया। योजनाबद्ध मांसाहार का तात्पर्य एक ऐसी कृषि खाद्य प्रणाली से है यह एक निर्विवाद तथ्य है कि मनुष्यों और जानवरों के जिसमें खेतों में कुछ अनाजों का उत्पादन सिर्फ इसलिए किया जाता मस्तिष्क में हिंसा की प्रवृत्ति उनके भोजन विशेष के कारण होती है कि वह अनाज जानवरों को खिलाया जाय, ताकि उनका माँस है। सतत रूप से मांस भक्षण एवं मदिरा का सेवन करने वाले अधिक कोमल और स्वादिष्ट हो। मनुष्य का मस्तिष्क हिंसक प्रवृत्ति वाला हो जाता है। इसके विपरीत समय-समय पर आयोजित विभिन्न गोष्ठियों में इस सम्बन्ध में शाकाहारी मनुष्य स्वभावतः शांत एवं सरल होता है। आश्चर्यजनक आंकड़े भी प्रस्तुत किए गए हैं। उन आंकड़ों के मनुष्य प्रकृति से अहिंसक प्राणी होने से शाकाहारी है, अनुसार अमेरिका और कनाडा में उत्पन्न होने वाले गेहूँ का केवल तदनुसार ही उसके शरीर और दांतों की रचना आकृति आदि पाई ३०वां भाग ही मनुष्य के आहार के लिए प्रयुक्त होता है। इन देशों जाती है। मांसाहार के पाचन में सामान्यतः जिन पाचक रसों की | में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति एक हजार किलोग्राम गेहूँ की खपत है आवश्यकता होती है वे हिंसक पशुओं में ही पाए जाते हैं। उनके जिसमें से मनुष्य केवल 30-40 किलोग्राम गेहूँ खाते हैं और शेष दांत की बनावट तथा आंतों की लम्बाई भी उसी के अनुसार होती 60-70 किलोग्राम गेहूँ गायों, सूअरों आदि को खिलाया जाता है, है जिससे वे मांस को चबा और पचा सकें, किन्तु मनुष्य के लिए ताकि वे पुष्ट हो सकें और उनसे अधिक और अच्छा मांस मिल PROP यह अति कठिन है। खाया हुआ मांस यदि किसी प्रकार पच भी सके। यह एक तथ्य है कि संसार की विशाल जनसंख्या के बावजूद जाय तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसी होती है कि जिससे मनुष्य के विश्व में इतना अनाज पैदा होता है कि प्रत्येक मनुष्य का पेट भर स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है और उसकी जीवनी शक्ति प्रभावित सके। होती है। मनुष्य के शरीर में निर्मित और सवित होने वाले पाचक पर्यावरण की दृष्टि से भी यदि शाकाहार और मांसाहार की BDO रस शाकाहार को पचाने की क्षमता रखते हैं। उन पाचक रसों की उपयोगिता पर विचार किया जाय तो स्वतः यह तथ्य सामने आता 800 प्रकृति ऐसी होती है कि वे शाकाहार को ही ठीक तरह से पचा है कि पशुओं का जीवन वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए सकते हैं। अनिवार्य है। इसलिए यदि अपनी स्वाद लोलुपता और आहार के विशेषज्ञों ने लोगों से आहार में सामिष पदार्थों को घटाने एवं लिए पशुओं को मारकर उनका जीवन समाप्त किया जाता है और हरी पत्तियों वाली सब्जियों का अधिकाधिक प्रयोग करने का आग्रह वनों को पशु विहीन बना दिया जाता है तो इसका सीधा प्रभाव किया। डाक्टरों ने लोगों से यह भी आग्रह किया कि वे जीने के / वनों पर पड़ेगा। क्योंकि पशु जीवन समाप्त होने से वनों से पशुओं लिए खाएँ, न कि खाने के लिए जिएँ। मात्र स्वाद की दृष्टि से की संख्या घटेगी जिससे वनों का ह्रास होगा और हम बहुत बड़ी जिह्वा की लोलुपता की वशीभूत होकर ऐसा आहार नहीं लेना | वन सम्पदा और उससे प्राप्त होने वाले लाभों से वंचित हो जायेंगे। चाहिए जो दूसरे प्राणियों को मारकर बनाया गया हो। वस्तुतः यदि क्योंकि वनों के ह्रास का अर्थ है बंजर जमीन में वृद्धि तथा कृषि देखा जाए तो मांस का तो अपना कोई स्वाद होता ही नहीं है। उत्पादन में कमी होना। सामिष भोजन के अधिक प्रयोग से परोक्ष उसमें जो मसाले, चिकनाई आदि अन्य अनेक क्षेपक द्रव्य मिलाए रूप से कृषि उत्पादन के घटने की संभावना रहती है। जाते हैं उनका ही स्वाद होता है, जबकि शाकाहारी पदार्थों फल, पता: सब्जी, मेवे आदि में अपना अलग स्वाद होता है और वे बिना किसी मसाले आदि के स्वाद से खाए जाते हैं। आचार्य राजकुमार जैन भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद् अमेरिका और इंगलैंड की सरकारों द्वारा इस समय जनता को / ई/६, स्वामी रामतीर्थ नगर औपचारिक रूप से यह हिदायत दी जा रही है कि वे भोजन में / नई दिल्ली 110 055 A जीवन में कभी ऐसे भी क्षण आते हैं जब मनुष्य पतित से पावन और दुष्ट से सन्त बन जाता है। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि asma मी PROGOPoratepsePersonabuse-Omyo980 Pos 32000000000000003