________________ 446 पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [खण्ड इससे स्पष्ट होता है कि हेम और सारस्वत व्याकरण के समान यह अपने समय में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्याकरण रहा होगा जिससे समस्त संस्कृतवेत्ता प्रभावित हुए और इसे उपयोगी मानते रहे। ऐसा माना जाता है शाकटायन व्याकरण पर कातंत्र व्याकरण का गहन प्रभाव है, यद्यपि उसमें प्रत्याहार शैली को अपनाया गया है। हेमचंद्राचार्य भी शाकटायन से प्रभावित हैं। फलतः वे भी परोक्षरूप से कातंत्र से प्रभावित हैं। वस्तुतः हेमचंद्र ने हो इसे कलापकतंत्र कहा है। उत्तरवर्ती वैयाकरण भी इससे प्रभावित रहे है। __ कातंत्र व्याकरण अन्य व्याकरणों की अपेक्षा संक्षिप्त और सरल है। इसमें सूत्रों की संख्या भी कम है / इसमें पाणिनि क 4111 सूत्रों को तुलना में कुल 1400 सूत्र हो है / इसमें संज्ञाओं का स्वतंत्र प्रकरण नहीं है, उन्हें सन्धिपाद में ही निरूपित किया गया है। इसमें व्याकरण में उपयोगो तद्धित, कृदन्त, तिङन्त आदि अन्य सभी प्रकरण संक्षेप में है। इसके तिङन्त प्रकरण में कालवाचो क्रियाओं का नामकरण विशिष्ट रूप में किया है / इसका अनुकरण हेमचंद्राचार्य भी किया है। इसमें विराम में अनुस्वार होने की विशेषता भी पाई जाती है। इस बात की महती आवश्यकता है कि इसका वैज्ञानिक रूप से सुसंपादित संस्करण प्रकाशित किया जावे / पाय 1. ऐन्द्र व्याकरण 2. कातंत्र व्याकरण 3. जैनेन्द्र व्याकरण जैन व्याकरणों का संक्षित विवरण इन्द्र आचार्य ई.पू. छठवीं सदी आ० सर्ववर्मन् वररुचि तीसरी सदी पूज्यपाद आचार्य पांचवीं सदी 885/1400 सूत्र 18 टीका पंचाध्यायी, अनेकशेष 3000/3700 सूत्र छठवी सदी नवमी सदो 1023 1088 चार अध्याय 10 वृत्ति/टीकार्य 16 पाद, 3236 सूत्र 6 टीकायें ८अध्याय 5651 सूत्र 4. क्षपणक व्याकरण 5. शाकटायन व्याकरण 6. पंचग्रन्थी व्याकरण 7. सिद्ध हेमचंद्र शब्दानुशासन 8. पंचग्रन्थो व्याकरण 9. प्रेमलाभ व्याकरण 10. मलयगिरि शब्दानुशासन 11. सारस्वत व्याकरण क्षपणक/सिद्धसेन शाकटायन पाल्यकीति बुद्धिसागर सूरि आ० हेमचद्र / बुद्धिसागर सूरि मुनिप्रेमलाभ मलयगिरि अनुभूति स्वरूप 1226 1131-1193 १५वीं सदी 27 टोकायें 700 सूत्र 23 टोकायें यशोभद्र आर्य वज्रस्वामो भूतबली 12. जैन व्याकरण 13. जैन व्याकरण 14. जैन व्याकरण 15. जैन व्याकरण 16. जैन व्याकरण 17. जैन व्याकरण 18. विद्यानन्द व्याकरण 19. नूतन व्याकर 20. दीपक व्याकरण 21. चिन्तामणि व्याकरण 22. शब्दाणंव व्याकरण श्रीदत्त प्रभाचंद्र सिंहनन्दि विद्यानंद जयसिंह सूरि भद्रेश्वर सूरि आचार्य शुभचंद्र मुनि सहजकीर्ति 1265 ई० 1383 तेरहवीं सदी 1548 1623 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org