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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि आज विश्व में चारों ओर नयी नैतिकता की मांग हो रही है। विज्ञान और तकनीकी युग की भौतिक विभीषिका से वैज्ञानिक ही संत्रस्त हैं। एक आवाज गूंज रही है - भारतीय पथ(दि इंडियन वे) को अपनाने की। मनुष्य की आंतरिक शक्ति को उभार कर नए आयाम देने की, मानवीय आचार संहिता को सेवा, त्याग, समता और संयम के साथ व्यक्ति और समाज के व्यापक संतुलन और सामञ्जस्य की। विज्ञान पंगु होकर अध्यात्म और दर्शन का संबल खोज रहा है। बौद्धिक ऊहापोह ने हमारी भावनात्मक क्रियाशीलता विकृत कर दी है। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में - स्वार्थ, सत्ता और सम्पत्ति ही जीवन का लक्ष्य है। कुछ ऐसे चिन्तक भी हैं जो पाशविकता, आक्रामक भावना. प्रतिशोध और सत्तास्वार्थ को आवश्यक बता रहे हैं - उदाहरणार्थ - “नेकेड एव", दि टेटिटोरियल इम्पेरिटिव आदि ग्रंथ। आज प्रत्येक पन्द्रह वर्ष में मनुष्य की बुद्धि (ज्ञान नहीं) दुगुनी हो रही है, उसके बोझ से वह स्वयं घबरा उठा है। नियमन और नियंत्रण का नितान्त अभाव है। अर्थवत्ता और गुणवत्ता ऐषणाओं और कषायों में धूमिल हो गयी, तब मुक्ति का एक ही पथ है, वह है जैन धर्म की मूल भूत मानवीय नैतिकता का। बरतानिया के एक सर्वेक्षण में बाताया गया है कि 18 और 25 वर्ष की आयु के अधिकांश युवा (विद्यार्थी) अपच, क्रोध, वैफल्य, विभिन्न आधि-व्याधि के साथ-साथ जिजीविषा खो बैठे हैं, उन्हें न घर सुहाता है और न बाहर। वे पूर्णतः निस्संग और एकाकी हैं - असामान्य व असंतुलित / माता-पिता और भाई-बहिन के प्रति उन्हें न प्रेम है और न लगाव / इस ग्लानि का उपचार, इन कषायों का अंत इस जिजीविषा से मुक्ति और दिशाहीनता में मार्ग प्रशस्त करने के लिए धर्म ही एकमात्र संबल है। बनार्ड शॉ ने भी अपने संस्मरण में यही कहा है - धर्म ही हमें भय और दुश्चिंताओं से मुक्त करेगा। जैन शासन इसका समर्थ और सबल आलोक है। रवीन्द्रनाथ की एक कविता आराध्य के प्रति है, जिसमें आज के मनष्य की मढता व गतिशीलता का ज्वलंत चित्रण है - तुमि जतो मार दिये छो से मार करिया दिये छो सोझा आमि जतो मार तुलेछि सकलइ होयेछे बोझा ए बोझा आमार नामाओ बंधु, नामाओ, भारेर वेगेति टेलिया चलेछि एइ यात्रा आमार थामाओ, बंधु थामाओ! 0 डॉ. श्री कल्याणमल जी लोढ़ा का जन्म 21 सितम्बर सन् 1621 में हुआ। आगरा एवं प्रयाग विश्वविद्यालयों से एम.ए., पी.एच.डी. करके 1648 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने। 20 वर्ष तक हिन्दी विभागाध्यक्ष भी रहे। विश्वविद्यालयीय अनेक समितियों के सदस्य एवं डायरेक्टर श्री लोढ़ा को जोधपुर विश्वविद्यालय का उप कुलपति चुना गया। हिन्दी के श्रेष्ठ लेखक एवं व्याख्याता। अनेक ग्रन्थों एवं शोधपत्रों के प्रणेता श्री लोढ़ा ने अनेक पुरस्कार अर्जित किये। जैन विद्या के लेखक, चिंतक एवं गवेषक ! -सम्पादक 110 कषाय : क्रोध तत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210376
Book TitleKashay Krodh Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanmal Lodha
PublisherZ_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf
Publication Year1999
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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