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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि प्रचलित की है। यह पद्धति मनुष्य की बौद्धिकता को प्रसिद्ध विद्वान् अब्राहम ओसलो ने मानव चेतना के जिन परिष्करण कर उसके संवेगों का उदात्तीकरण करती है। ६ स्तरों का विवेचन किया हैं, उसकी अंतिम स्थिति क्रोध का सामान्य उपचार और उससे निवृत्ति निम्नलिखित “आत्म साक्षात्कार" में है। आत्म साक्षात्कार की यह उपायों से संभव है - (१) क्रोध की आत्म स्वीकृति, भूमिका मनुष्य के सामाजिक आचार और मूल्यों पर आधृत आत्म - संलाप व निरीक्षण, (२) उसके कारणों का विवेकपूर्ण __ है। इन मूल्यों के लिए भी संस्कारों का शुद्धिकरण अनिवार्य वस्तुनिष्ठ विश्लेषण, (३) रचनात्मक वृत्ति से पारस्परिक है। आज व्यक्ति और समाज भय और चिंता से आक्रांत संप्रेषणीयता द्वारा यथार्थबोध (४) अन्तर्दर्शन (५) बाह्य है। प्रसिद्ध मनोशास्त्री कर्ट राइडर कहता है कि सम्पूर्ण नीति (६) एग्रनोफोबिया से मुक्ति आदि । वाल्मीकि रामायण विश्व एक सार्वभौम नियम व व्यवस्था से बंधा है - इस में हनुमान लंका दाह पर प्रायश्चित करते हुए कहते नियम और व्यवस्था का अतिक्रमण करके व्यक्ति और हैं - यह मैने क्या किया, क्रोधावेश में लंका जला डाली। समाज दोनों भय, आतंक व चिन्ता से ग्रस्त होते हैं। यह उनका कथन है अतिक्रमण ज्ञात और अज्ञात दोनों कारणों से होता है। यदि वह इस सार्वभौम व्यवस्था का पालन करे तो अभय “धन्याः खलु महात्मानः ये बुद्धया कोप मुत्थितम् । है और निरातंक होकर चिंता से मुक्त हो जाएगा। क्रोध निरुन्यन्ति .......... दीप्तमग्निमिवाम्भसा ।।" रहित जीवन इसका एक हेतु है। वशिष्ठ जी राम से कहते प्रेक्षाध्यान-साधना एक ऐसी सिद्ध पद्धति और प्रक्रिया हैं - अभयं वैब्रह्ममामैर्षा - अभय रहो और अभय रखो। है, जो मनुष्य की आंतरिक शक्ति का विवेकीकरण व जैन साधना पद्धति में आभ्यंतर तप के अन्तर्गत उदात्तीकरण कर उसे आत्मसाक्षात्कार व आत्म दर्शन कराती प्रायश्चित, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग का विवेचन है। प्रज्ञा के जागरण का सर्वाधिक शक्तिशाली साधन कषाय विजय का अमोघ अस्त्र है। आधुनिक मनोरोग है - समता और अनेकान्त दृष्टि, प्रभा का सतत चैतन्य। चिकित्सा में भी ध्यान को अत्यन्त महत्वपूर्ण गिना है। इन्द्रियातीत चैतन्य; उसका विकास, जिसका सुखद परिणाम बायोएथिक्स और बायो फीड बेक प्रणाली ध्यान की क्षमता है - सयम, समता आर शाति, अर्थात् सर्वतोभावेन क्षमा को उजागर करती है । मनोविज्ञान की अवधारणा चारित्रिक भाव । युवाचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि - "अशेष, की शुद्धता के साधन हैं - कहु एवं अविषाणाओं बितिया बाचतन अनुभूति ममत्व और तनाव का विसर्जन है" - क्रोध का मंया"। गलती करके उसे स्वीकार न करना दुगुनी मूर्खता आवश्यक फल है - विकृत अहं और तनाव । आज विज्ञान है। निशीथ चूर्णि" में आत्मालोचन और प्रायश्चित से ने यह प्रमाणित कर दिया है कि मानव जीवन में संस्कारों चरित्र शुद्धि, आत्म शुद्धि, संयम, ऋजुता, मृदुता, आदि का बड़ा महत्व है। ये संस्कार कम से कम पांच पीढ़ी तक का विकास माना गया है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार चलते रहते हैं, हेय संस्कारों का शुद्धिकरण जीवन को प्रायश्चित से व्यक्ति सभी संवेगों से मुक्त होता है। जैन उच्च भाव और ऊर्ध्व मार्ग पर अग्रसर करता है। संस्कार धर्म में कायोत्सर्ग का भी अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। की शुद्धि वस्तुतः आत्म शुद्धि है – “आत्मशुद्धि साधनं क्रोध की स्थिति में जो मानसिक और शारीरिक उग्रता व धर्मः”। जिस क्षण मन में राग, द्वेष, घृणा, जुगुप्सा, तनाव होता है उसका उपचार है - कायोत्सर्ग, जिससे क्रोधादि कषाय उत्पन्न हो, तब अप्रमत्त भाव से उनका स्थिरता और जागरूकता के साथ साथ शुद्ध चैतन्य की निषेध और निराकरण आत्मशुद्धि का हेतु बनता है। अनुभूति होती है। “भाव विशुद्धि, मानसिक एकाग्रता, १०८ कषाय : क्रोध तत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210376
Book TitleKashay Krodh Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanmal Lodha
PublisherZ_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf
Publication Year1999
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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