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________________ जैन संस्कृति का आलोक समाप्त करना चाहा। आदम और इव के दोनों पुत्रों ने ध्वंसात्मक प्रवृत्ति को भी समाप्त करने में सहायक होता क्रोध के कारण एक-दूसरे का वध कर दिया। यहीं प्रश्न है। वर्न कहता है कि भय व क्रोध का हनन करने के उठता है कि क्रोध होता क्यों है ? डॉ.मिडो इसका उत्तर लिए व्यक्ति को अपनी सारी ऊर्जा का आभ्यंतरीकरण इस प्रकार देते हैं। प्रथम कारण है - नैराश्य, विफलता, करना चाहिए। व्यक्ति चाहे यह न जाने कि वह क्रोधित महत्वाकांक्षा, स्वाग्रह, परिवेश के साथ असंतुलन, स्वपीड़न है, पर उसका दृश्य इसे जानता है। क्रोध का घातक व परपीड़न आकांक्षा। व्यक्ति की विकृत कामवासना भी परिणाम सारे शरीर पर पड़ता है। डॉ. विलियम्स का मत क्रोध का एक कारण है। है कि दिल का दौरा क्रोध के कारण ही अधिक होता क्रोध का परिणाम अत्यन्त घातक होता है। डॉ. है - वैमनस्य और क्रोध ही इसके हेतु हैं। एक अन्य मिडो का कथन है कि मनुष्य के लिए यह सर्वाधिक विद्वान् इवो के फियराबेंड कहते हैं कि क्रोध व आततायीपन घातक संवेग है। मनुष्य की स्नायविक प्रक्रिया सहानकम्पी का निषेध कर व्यक्ति को अपनी अस्मिता की खोज से (पेरासिम्पथेटिक) व अनुकम्पी (सिम्पेथेटिक) नाड़ियों पर बृहत् मानवीय मूल्यों का संचार करना चाहिए। इसी निर्भर करती है। सहानकम्पी दैनिक कार्य-कलापों का प्रकार एक अन्य विद्वान का मत है कि मनुष्य का शंकालुसंचालन करती है। मनुष्य की पाचन क्रिया, स्वास्थ्य लाभ स्वभाव, अविश्वास, असंयम, मानसिक विक्षेप और क्रोध, आदि इससे होते हैं। अनुकम्पी नाड़ियों की आवश्यकता । उसकी व्यावहारिकता नष्ट कर एक ऐसा प्रतिशोध उपस्थित आपात्कालीन स्थिति में सहायक होती है। सहानुकम्पी करते हैं, जिससे अन्ततः हतप्रभ होकर वह अपने से और शांति का सूचक है और अनुकम्पी उत्तेजक स्थिति का। समाज से ही टूट जाता है। उत्तेजना की स्थिति में हृदय पर भार पड़ता है, रक्तचाप अब हम प्रसिद्ध मनोशास्त्री डॉ. एलबर्ट ऐलिस का बढ़ जाता है, शर्करा का अधिक प्रयोग होता है। अधिवृक्क अभिमत भी देखें। डॉ. एलिस ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "हाउ । (ऐडरीनल) ग्रंथि से स्राव भी अधिक होने लगता है। टू लिव विद एंड विदाउट एंगर" में क्रोध पर अत्यन्त क्रोध की अवस्था में यही दैहिक क्रिया है। इसका दुःखद वैज्ञानिक व विवेकपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं। उनका परिणाम है शिरःशूल, तनाव, अधिक रक्त चाप, गठिया, मत है कि क्रोध मानव जीवन में सर्वाधिक अपकारक व हृदयरोग, मानसिक असंतुलन, मधुमेह, श्वास प्रक्रिया की निरर्थक है। उन्होंने उन विद्वानों का सतर्क उत्तर दिया है तीव्रता, आमाशय शोथ, आदि। कभी - कभी जब जो यह मानते हैं कि क्रोध अपनी सीमित परिधि में, एक आक्रामक प्रवृत्ति अनियंत्रित होकर गहन अवसाद में परिणत ऐसा कवच है, जो आक्रामक व आततायी समाज से हो जाती है, तब व्यक्ति आत्महत्या भी कर लेता है। व्यक्ति की रक्षा कर उसके “अहं" का बचाव करता है। मनुष्य के भीतर एक सृजनात्मक वृत्ति होती है और । इस भ्रांत धारणा का विरोध करते हुए डॉ. एलिस ने यह दूसरी ध्वंसात्मक । एरिक वन का अभिमत है कि मनुष्य प्रतिपादित किया है कि क्रोध व्यक्ति के व्यक्तित्व का को अपनी ध्वंसात्मक वृत्ति समाप्त कर लेने के लिए कुछ खण्डन कर उसे विषयगामी बनाता है। वह आगे कहता निश्चित उद्देश्य निर्धारित करना चाहिए। इनमें आध्यात्मिक है कि क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति से सभी दूर रहकर उन्नति ही मुख्य है। हम आगे चलकर देखेंगे कि "प्रेक्षा उसकी अवहेलना करते हैं। डॉ. एलिसन क्रोध के उपचारार्थ ध्यान” किस प्रकार मानसिक संतुलन के साथ मनुष्य की नवीन और लोकप्रिय पद्धति "रेशनल इमोटिव थिरेपी" कषाय : क्रोध तत्त्व १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210376
Book TitleKashay Krodh Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanmal Lodha
PublisherZ_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf
Publication Year1999
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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