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________________ wwwwwwwwwww ८५८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय सर्वत्र भोग-रिति का उपदेश दिया है. इसकी दूसरी रचना पम्पचरित है. इसका विषय भारत है. अपने कालीन राजा आदिकेसरी को अर्जुन के स्थान पर रखकर कवि ने स्थान-स्थान पर उसकी प्रशंसा की है. अर्जुन के साथ अपने राजा की तुलना करने की धुन में कहीं-कहीं कथावस्तु में भी किंचित् अन्तर कवि को करना पड़ा है, तथापि काव्य के महत्त्व में कोई न्यूनता नहीं है. यह कर्नाटक साहित्य में आद्य कवि माना जाता है. जैन जैनेतर सर्वक्षेत्रों में पम्प के साहित्य के प्रति परमादर का स्थान है, उत्तर ग्रंथकारों ने पम्प को बहुत आदर के साथ स्मरण किया है. आगे जाकर एक कवि ने अपने को अभिनव पम्प के नाम से उल्लेख किया है, इससे भी आदि पम्प की महत्ता व्यक्त होती है. कवि पोन्न पम्प के बाद पोन्न नाम का कवि हुआ. इसका समय ई० ६५० करीब माना जाता है. इसने भी पम्प के समान ही एक धार्मिक और लौकिक तथा दूसरा धार्मिक, इस प्रकार दो काव्यों की रचना की है ,इसकी रचना में मुख्यत: शान्तिनाथपुराण का उल्लेख किया जा सकता है. दूसरा लौकिक ग्रंथ भुवनैकरामाभ्युदय उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा जिनाक्षरमाला' नामक स्तोत्र ग्रंथ को भी इसने रचना की है. इस कवि का भी कर्नाटक साहित्यक्षेत्र में उच्च स्थान है. इसे कविचक्रवर्ती उभयभाषा-कविचक्रवर्ती आदि उपाधियां थीं. उत्तर कवियों ने इसका भी सादर स्मरण किया है. कवि रन्न पोन्न के बाद रन्न महाकवि का उल्लेख करना चाहिए. वह करीब क्रि० श० ६६३ में हुआ, यह जैन वैश्य था. सामान्य कासार कुल में उत्पन्न होने पर भी संस्कृत और कन्नड़ में उद्दाम पांडित्य को प्राप्त किया था. अनेक सुन्दर ग्रंथों की रचना कर कर्नाटक साहित्य-जगत् का इसने महदुपकार किया है. इसकी रचनाओं में से कुछ उपलब्ध हैं. अजितनाथ तीर्थंकर पुराण, आदि उपलब्ध हैं, अज्य उल्लिखित परशुरामचरित चक्रेश्वरचरित अनुपलब्ध हैं. यह भी कर्नाटक साहित्य में उच्च स्थान में गणनीय कवि है. पम्प, रन्न और पोन्न ये कन्नड़ कवि रत्नत्रय कहलाते हैं इसीसे इनकी महत्ता का अनुमान किया जा सकता है. कवि चामुण्डराय इसी समय के कवि चामुंडराय ने जो कि श० ६६१ से ६८४ तक गंगवाडी के राजा मारसिंह, राजमल्ल का सेनापति था, चामुंडरायपुराण की रचना की है. यह चतुर्विंशति तीर्थंकरों के चरित्र को वर्णन करनेवाला गद्य-ग्रंथ है. इस प्रकार शिवकोटी ने वड्डाराध ने नामक गद्यग्रंथ की रचना की है. कुछ अन्य कविगण इसके बाद करीब ग्यारहवें शतमान में धर्मामृत के रचयिता कवि नमसेन और लीलावती प्रबन्ध के रचयिता नेमिचन्द्र, कधिगर काव्य के रचयिता अंडम्म का उल्लेख किया जा सकता है. इन्होंने धर्मोपदेश देने के निमित्त से विविध प्रमेयों को चुनकर ग्रन्थ निरूपण किया है. कथा-साहित्य के साथ अहिंसादि धर्मों का परिपोषण इन ग्रंथों से होता है. इसी युग में कुछ अन्य कवि भी हुए हैं, जिन्होंने चतुर्विंशति तीर्थकरों के पुराणग्रंथों की रचना की है. उनमें उल्लेखनीय कवियों का दिग्दर्शन मात्र कराया जाता है, कविकर्णपार्य ने (१-१४०) नेमिनाथ पुराण, अगतदेवने (११८६) चन्द्रप्रभपुराण, कवि आचव्ण (११६५) ने वर्धमान पसणढा, कवि गुणवर्म (१२३५) ने पुष्पदंत पुराण, कवि कमलभव ने (१२३५) शान्तीश्वरपुराण, कविमहाबल ने (१२५४) नेमिनाथ पसणढा, मधुर कवि ने (१३८५) धर्म नामपुराण की रचना की है. इन सबकी रचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं. कवि चक्रवर्ती जन्न क्रि० श० ११७० से १२३५ के बीच में जन्न महा कवि ने अपनी रचना से कर्नाटक साहित्यजगत् का उपकार किया > Jarcati Finadiary.org
SR No.210348
Book TitleKarnatak Sahitya ki Prachin Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size596 KB
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