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________________ इस मन्दिरमें देवीके सौम्य एवं अघोर रूपोंवाली भी अनेक प्रतिमायें हैं। मन्दिरके बाह्य भागपर अनेक पौराणिक कथाओंके दृश्य अंकित हैं। इनके अतिरिक्त शिव-नटेश, सूर्य, गजानन, वराह, नरसिंह, शेषशायी विष्णु, महिषासुरमर्दिनीकी प्रतिमायें है / एक स्थान पर सागर-मन्थनका भी चित्रण है। इनके साथ हो साथ हिन्दूधर्मके विभिन्न दवताओंकी जैसे हरिहर, हरिहरपितामह, लक्ष्मीनारायण, उमामहेश्वर तथा अर्धनारीश्वर-शिवकी भी मूर्तियां बना है। दिक्पालोंके अतिरिक्त लोक जीवनसे सम्बन्धित भी अनेक दृश्य है। मिथुन दृश्योंकी भी झाँको यहाँ प्रचुर मात्रामें देखने को मिलती है। मन्दिर में प्रवेश द्वारके बाई ओर पवन-पुत्र हनुमान्को भी आदमकद प्रतिमा रखी है। ओसियाके जैन मन्दिरोंमें महावीरजीका मन्दिर विशेष रूपसे महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर पहिलसे ही जैनियोंके श्वेताम्बर सम्प्रदायको प्रमुखता थी, जैसा कि इन मूर्तियों को देखनेसे विदित होता है। मन्दिरके अन्दर व बाहरी भाग पर अनेक जैन देवी-देवताओंकी मर्तियोंके अतिरिक्त सामाजिक जीवनके दश्य उत्कीर्ण हैं, जो उस समयके लोगोंके जीवनके अध्ययन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। नमूर्ति कलाके अध्ययनके लिये भी यह मन्दिर विशेष महत्त्वका है, जिसका अभी तक पूर्ण रूपसे अध्ययन नहीं हो पाया है। इस प्रकार हमें ओसियांमें विभिन्न धर्मोका समन्वय देखने को मिलता है। यहां पर न केवल हिन्दू व जैनधर्म ही पनपे थे, वरन् हिन्दूधर्मक विभिन्न सम्प्रदाय जैसे वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, एवं गाणपत्यके अनुयायी भी एक दूसरेके धर्मोंका आदर करते हुए रहते हैं, इस धारणाके अनुसार कि एक ही देवके अनेक रूप है, अतः चाहे उसकी पूजा किसी भी रूप में क्या न की जाये, वह एक ही देवता की होती है : "एक सद् विप्रा बहुधा वदन्ति' -ऋग्वेद, 1, 164, 46 इतिहास और पुरातत्त्व : 21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210336
Book TitleOsiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrajendranath Sharma
PublisherZ_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf
Publication Year1977
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mithology
File Size453 KB
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