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एकात्मकता के साये में पली-पुसी हमारी संस्कृति / ५१
जैनधर्म प्रारम्भ से ही वस्तुत: एकात्मकता का पक्षधर रहा है। उसका अनेकान्तवाद का सिद्धान्त अहिंसा की पृष्ठभूमि में एकात्मकता को ही पुष्ट करता रहा है, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। हिंसा के विरोध में अभिव्यक्त अपने प्रोजस्वी और प्रभावक विचारों से जैनाचार्यों ने एक ओर जहाँ दूसरों के दुःखों को दूर करने का प्रयत्न किया वहीं मानव-मानव के बीच पनप रहे अन्तर्द्वन्द्वों को समाप्त करने का भी मार्ग प्रशस्त किया। समन्तभद्र ने उसी को ही सर्वोदयवाद कहा था । हरिभद्र और हेमचन्द्र ने इसी के स्वर को नया आयाम दिया था। प्रारम्भ से लेकर अभी तक का सारा जन साहित्य एकात्मकता की प्रतिष्ठा करने में ही लगा रहा है । इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं जिसमें जैनधर्मावलम्बियों ने किसी पर आक्रमण किया है और एकात्मकता को धक्का लगाया है । भारतीय संस्कृति के विकास में उसका यह अनन्य योगदान है जिसे किसी भी कीमत पर झठलाया नहीं जा सकता।
विशेष दृष्टव्य तो यह है कि विभिन्न संप्रदायों के उदित हो जाने के बावजद धार्मिक सहिष्णुता कम नहीं हुई। राजाओं ने अपने मन्तव्य पालन करते हए भी दूसरे धर्मों के प्रायतनों को पर्याप्त दान दिया। इसका फल यह हुआ कि हमारी एकता कभी मर नहीं सकी बल्कि उसमें नये खून का संचार होता रहा । धर्म और संस्कृति के आदान-प्रदान ने देश में विविधता के साथ ही एकता का रूप बनाये रखा।
इसी बीच मुस्लिम अाक्रमण हुए। उनके भयंकर और निर्दयतापूर्ण अत्याचारों से समूचा उत्तरापथ आक्रान्त हो गया। गुजरात के वघेले, देवगिरि के यादवों और द्वारसमुद्र के होयसलों आदि का भी अन्त सा हो गया पर विजयनगर राज्य का स्वातन्त्र्य प्रेम वे नष्ट नहीं कर सके । उसकी राजनीति, समदर्शिता और सदाशयता की स्थापना करने वाले संगम सरदार के पांच वीर पुत्र थे जिन्होंने (३४६ ई. में) विजयनगर राज्य की स्थापना की और हरिहरराय उसका प्रथम राजा बना । इस राज्य में जैन, वैष्णव, लिंगायत, वीरशैव, सदर्शव सभी शान्ति से रहते थे उनकी उदारता और धर्मसहिष्णुता के कारण। बहमानियों और मुहम्मदों के साथ उसके और उसके उत्तराधिकारियों के युद्ध होते रहे पर प्रजा में कभी वैमनस्य उत्पन्न नहीं हुमा । यदि हुआ भी तो राजा की दूरदर्शिता के कारण शान्त कर दिया गया। जैनों और वैष्णवों के बीच हए विवाद में बुक्काराय का निष्पक्ष निर्णय इसका उदाहरण है। सकल वर्णाश्रमधर्मरक्षक, सर्वधर्मसंरक्षक जैसे विरुद्ध धारण करने में राजा लोग अपना सम्मान मानते थे। कृष्णदेव की धर्मनिरपेक्षता तो प्रसिद्ध है ही। बाद में मुसलमानों ने विजयनगर साम्राज्य को बुरी तरह से बर्बाद किया।
इसके बाद लगातार मुस्लिम आक्रमण होते रहे । महमूद गजनवी एक धर्मान्ध विध्वंसक एवं बर्बर लुटेरा था ही। मुहम्मद गौरी, मुहम्मदविन बख्तियार खिलजी आदि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बेरहमी से मन्दिरों को लूटा और पुस्तकालय जलाये । एकसूत्रता के प्रभाव के कारण हिन्दू राजे परास्त होते रहे । हठात् धर्मपरिवर्तन कराना मुस्लिम प्रशासकों की धर्मान्धता का निदर्शन है । पर निजामुद्दीन अोलिया, शेख सलीम चिश्ती प्रादि कुछ ऐसे भी मुस्लिम थे जिन्होंने इस्लाम को भारतीयता के रंग में रंग दिया। मलिक मुहम्मद जायसी जैसे सफी कवियों ने प्रेमगाथाओं का सृजन किया और अमीर खुसरो जैसे कवि ने हिन्दी-संस्कृत-उर्दू मिश्रित भाषा के प्रचलन का प्रयास किया । इसे उनकी एकात्मकता का उदाहरण कह सकते हैं।
धम्मो दीवो संसार समुम में धर्म ही दीप है
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