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________________ दशरथ गोंड २३१ उपर्युक्त चर्चा से स्पष्ट है कि कुछ इने-गिने अपवादों को छोड़कर सभी ऋषियों के उपदेश मुक्ति-मार्ग के ही उपदेश हैं । सीमित उपलब्ध सामग्री से उनमें प्रत्येक का दार्शनिक दृष्टिकोण तो पूर्णतया स्पष्ट नहीं होता, और यह भी संभव है कि जिस युग का यह सन्दर्भ है उसकी दृष्टि से विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों में वस्तुतः परिपक्वता का अभाव रहा हो और किंचित् अस्पष्टता रही हो । परन्तु यह निर्विवाद है कि प्रायः प्रत्येक के उपदेश में आचार-विचार की शुद्धता पर बल है और इन्द्रिय संयम, अनासक्ति, अहिंसादि व्रतों के पालन का उपदेश है । संक्षेप में इसमें कोई संदेह नहीं प्रतीत होता कि सामान्य रूप से ऋषिभाषित के ये ऋषि प्रायः श्रमण परिव्राजक परम्परा की ही विशेषता लिये हुए हैं । परन्तु हमारी दृष्टि से एक अत्यन्त रोचक तथ्य यह है कि उपर्युक्त सूची में कुछ अपरिचित नामों के साथ अनेक सुपरिचित नाम हैं, जो न केवल अन्यत्र जैन साहित्य में प्राप्त होते हैं, अपितु बौद्ध और ब्राह्मण साहित्य भी मिलते हैं । कुछ तो ऐसे नाम हैं जो ऐतिहासिक स्वीकार किये जाते हैं और जिनसे जुड़े उपदेश अन्य स्रोतों से भी भली-भाँति समर्थित हैं । यह भी रोचक है कि इस सूची में पार्श्व, वर्द्धमान, मंखलिपुत्र, महाकाश्यप, सारिपुत्र, आदि सुपरिचित नाम भी हैं और इनके साथ जुड़े उपदेशों की ज्ञात सूचनाओं से कहीं कोई विसंगति नहीं है । " जातक जातक कथाओं में बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं संग्रहीत हैं जब बुद्ध ने बुद्धत्व की अभीप्सा में अपनी बोधिसत्त्व अवस्था में पारमिताओं का अभ्यास किया था । थेरवादी परम्परा में इन कथाओं को सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय में स्थान दिया गया है । इसके संकेत हैं कि मूल जातक गाथा रूप में थे और आकार में संक्षिप्त और अनुमानतः प्रत्येक जातक के लिये मौखिक कथा कही जाती थी । बुद्ध के पूर्व जन्मों की ये कथायें इतनी प्रचलित हो गयी थीं कि उनके संकेत रूप गाथा का ही उल्लेख कर देना पर्याप्त होता था और उतने से ही कथा समझ ली जाती थी । ये कथायें विस्मृत न हो जायँ इसलिये काला तर में प्राचीन गाथाअ और उनसे संयुक्त मौखिक कथाओं ने सम्मिलित रूप से जातकट्ठकथा का रूप लिया । इसों समय जिस जातक से हम प्रायः परिचित हैं वह यही प्राचीन जातकटुकथा या जातकट्टवण्णना १. २. ऋषिभाषित की सूची के अन्य अनेक ऋषियों और उनके मतों को पहचानने की चेष्टा की जा सकती है । सागरमल जैन जी के अध्ययन में इस प्रकार का प्रयास है। उन्होंने रामपुत्तऋषि को गौतम बुद्ध के गुरु रुद्रक रामपुत्त के रूप में पहचानने की चेष्टा की है । यह रोचक है कि ऋषिभाषित में महाकाश्यप और सारिपुत्र को तो स्थान मिला है किन्तु उनके शास्ता को गौतम नहीं । बुद्ध 7 जातक साहित्य से सामान्य परिचय के लिये देखिए विण्टरनिट्ज़, एम० ए हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, खण्ड २, पृष्ठ ७१३ और आगे; उपाध्याय, भरत सिंह, पालि साहित्य का इतिहास, पृ० २९७ और आगे; जातक, अंग्रेजी अनुवाद, सं०, ई०वी० कावेल, खण्ड १, प्राक्कथन; हिन्दी अनुवाद --- भदन्त आनन्द कौसल्यायन, खण्ड १ वस्तुकथा आदि । प्रस्तुत लेख में पाद-टिप्पणियों में जातकों के सभी सन्दर्भ भदन्त कौसल्यायन महोदय के हिन्दी अनुवाद से दिये गये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210308
Book TitleRushibhashit aur Palijatak me Pratyek Buddha ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Gond
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
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