SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सार से अनुमानित किया जा सकता है। मेरुपर्वत का 'महाविदेह-बाजार' कैसे हो भया ? यहाँ के से पूर्व में, महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत 'सुकच्छ- महाराज 'श्रीगर्भ' हैं न कि कर्मपरिणाम ।' आचार्य विजय' नामक एक देश है। इसका राजा था- श्री क्या कह रहे हैं यह सब ?' आचार्यश्री ने उत्तर 'अनुसुन्दर' चक्रवर्ती । इसकी राजधानी थी-'क्षेम दिया-'धर्मशीले सुललिते ! तुम 'अगृहीत संकेता' पुर' । वृद्धावस्था के अन्तिम समय, वह अपना देश हो । मेरी बात का अर्थ तुम नहीं समझ पायीं ।' देखने की इच्छा से भ्रमण पर निकलता है। और सुललिता सोचती है-आचार्यश्री ने तो मेरा नाम किसी दिन 'शंखपुर' नगर के बाहर बने 'चित्तरम' भी बदल दिया। तभी, आचार्यश्री के कथन का नामक उद्यान के पास से गुजरता है। आशय समझकर महाभद्रा निवेदन करती है भगवन् । यह चोर, मृत्युदण्ड से मुक्त हो सकता है इस समय, चित्तरम उद्यान में बने 'मनोनन्दन' क्या?' आचार्यश्री ने उत्तर दिया-'जब उसे तेरे नामक चैत्य भवन में समन्तभद्राचार्य ठहरे हुए थे। दर्शन होंगे, और वह हमारे समक्ष उपस्थित होगा, प्रवर्तिनी-साध्वी 'महाभद्रा'उनके सामने बैठा थीं। उसकी मुक्ति हो जायेगी ।' महाभद्र ने पूछा-'तो 'सुललिता' नाम की राजकुमारी और 'पुण्डरीक' राक क्या मैं उसके सम्मुख जाऊँ ?' आचार्यश्री ने कहा नाम का राजकुमार भी, इस सन्त-सभा में बैठे थे। __-'जाओ। इसमें दुविधा कहाँ है ?' _ अचानक ही रथों की गड़गड़ाहट और सेना का महाभद्रा उद्यान से निकलकर बाहर राजपथ कोलाहल सुनकर सभी का ध्यान शोर की ओर पर आई और अनुसून्दर चक्रवर्ती के निकट आने आकृष्ट हो जाता है । उत्सुकता और जिज्ञासावश पर उससे बोली- भद्र ! सदागम की शरण स्वीराजकुमारी, महाभद्रा से पूछती है-'भगवती! कार करो।' यह कैसा कोलाहल है ?' महाभद्रा ने आचायश्री साध्वी के दर्शन से अनुसून्दर को 'स्वगोचर' की ओर देखकर कहा-'मुझे नहीं मालूम ।' किंतु, (जाति/पूर्वजन्म-स्मरण) ज्ञान हो जाता है ।। आचार्यश्री ने इस अवसर को राजकुमार और उसने आचार्यश्री द्वारा कही गई बात उनसे सुनी, राजकुमारी को प्रबोध देने के लिए उपयुक्त समझते और उनके साथ, आचार्यश्री के समक्ष आकर उप- YES हुए, महाभद्रा से कहा---'अरे महाभद्र ! तुम्हें नहीं स्थित हो जाता है। वह आचार्यश्री को देखकर, मालूम है कि हम सब इस समय 'मनुजगति' नामक सुख के अतिरेक से भर उठता है। और अतिप्रदेश के महाविदेह बाजार में बैठे हैं । आज एक प्रसन्नता में मूच्छित होकर वहीं गिर पड़ता है। चोर, चोरी के माल सहित पकड़ लिया गया है। आचार्यश्री द्वारा प्रबोध देने पर वह सचेत होता 112 जिसे 'कर्म-परिणाम' महाराज ने अपनी प्रधान है। राजकमारी सुललिता, उससे चोरी के विषय महारानी 'कालपरिणति' से परामर्श करके उसे में पछती है। आचार्यश्री भी उसे अपना सारा मृत्युदण्ड की सजा सुनाई है। 'दुष्टाशय' आदि वृत्तान्त सुनाने का आदेश देते हैं, तब अनुसुन्दर ने दण्डपाशिक उसे पीटते हुए वध-स्थल की ओर ले साध्वी के दर्शन से उत्पन्न पूर्वजन्म-स्मरण का जा रहे हैं। आचार्यश्री की बात सुनकर, सुललिता सहारा लेकर, अपनी भवप्रपञ्चकथा, तमाम उपआश्चर्य में पड़ जाती है । और पुनः महाभद्रा से माओं के साथ सुनानी आरम्भ कर दी। पूछती है-'भगवती ! हम लोग तो शंखपुर के अनुसन्दर की कथा सुनते-सुनते राजकुमार 'चित्तरम' उद्यान में बैठे हैं । यह 'मनुजगति' नगर पुण्डरीक प्रतिबुद्ध हो जाता है । किन्तु, राजकुमारी १ उमितिभव प्रपंच कथा---पीठबन्ध-श्लोक ६३ ३ वही -पीठबन्ध, श्लोक ६६ A२ उपमितिभव प्रपंच कथा पृष्ठ-७३६ कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट ५५७ 860 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 603800 Jain Education International For Drivate Personalillse Only www.jainelibrary.org
SR No.210297
Book TitleUpmiti Bhav Prapancha Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Story
File Size935 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy