________________ 46 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड -.0.0.0 .0.-.-.-.-.-.-.-.-.-........................................... जाता / 'क्वेश्चन बैंक' का तरीका कारगर होगा-यह मानकर कई विश्वविद्यालयों ने इसे अंगीकार किया। लेकिन प्रत्याशित परिणाम सामने नहीं आ पाये। पिछले कुछ समय से इधर ‘इन्टरनल एसैसमेन्ट' पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। निश्चय ही टैस्टों की संख्या तो इसमें बढ़ जाती है मगर अपेक्षित उद्देश्य की प्राप्ति यहाँ भी संभव नहीं है। 20 प्रतिशत सैशनल मार्क्स होते हैं, जबकि 80 प्रतिशत बाह्य परीक्षाओं पर निर्भर करते हैं / 20 प्रतिशत में अंकों का लेन-देन एक हास्यास्पद, पर दिलचस्प प्रतिस्पर्धा को आमन्त्रित करने वाला होता है। लगता है शिक्षा के आधिकारिक विद्वान् और विशेषज्ञ अब परीक्षा के ऐसे ही किसी तरीके की तलाश में तल्लीन हैं, जिसमें अध्ययन को अधिकाधिक हतोत्साहित किया जा सके और हाँ परीक्षा-कर्म भी जिसमें आराम से आयोजित हो सके। xxxxxxx X X X X X X X X X X X X X X X अणासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चण्डं पकरेन्ति सीसा / -उत्तरा० 1113 आज्ञा में न रहने वाले, बिना विचारे कुछ का कुछ बोलने वाले शिष्य मृदु स्वभाव वाले गुरु को भी क्रुद्ध बना देते हैं। xxxxx X X X X X xxxxxxx xxxxxxx Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org