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________________ उपयुक्त महाकाव्यों के अतिरिक्त 'अहोदानम्', 'भरतमुक्ति,' 'चरम तीर्थंकर महावीर' तथा 'सत्यरथी' उल्लेखनीय आधुनिक हिन्दी जैन प्रबन्धकाव्य हैं / मुनि विनयकुमार विरचित , सों वाले 'अहोदानम्' काव्य में चन्दना सती के जीवन की मार्मिक व सरस अभिव्यक्ति है / 'भरत-मुक्ति' तेरापंथ के प्रसिद्ध आचार्य श्री तुलसी प्रणीत 13 सर्गों का वृहदाकार महाकाव्य है। श्रीमदविजय विद्या चन्द्र सूरि कृत प्रबन्ध 'चरमतीर्थकर महावीर' भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाणोत्सव पर प्रकाशित हुआ। इस काव्यकृति को कवि ने 41 रंगीन चित्रों से सज्जित किया है। कवि नीरव विरचित 'सत्यरथी' प्रबन्ध काव्य सन् 1978 में प्रकाशित हुआ है। 228 पृष्ठों के इस सरस काव्य में भगवान महावीर का महत् जीवन प्रतीकात्मक शैली में अभिव्यंजित है। हिन्दी जैन महाकाव्यों के अनुशीलन के उपरांत उनकी विशिष्टताओं के विषय में सार रूप से कहा जा सकता है कि इन महाकाव्यों की भित्ति जैनधर्म व दर्शन पर अवलम्बित है। सभी काव्यों के नायक कोई न कोई तीर्थकर हैं तथा कवियों का महत उद्देश्य नायक के गरिमासंभूत जोवन की पृष्ठभूमि में मानव को सांसारिक भोगेषणाओं से निर्लिप्त रखकर मुक्ति प्राप्ति के लिए प्रेरित करना है। तीर्थकरों के चरित्र का अतिशय उत्कर्ष और उनके जीवन में अतिप्राकृत तत्त्वों के समावेश का उद्देश्य आराध्य (नायक) को आकर्षण का केन्द्र बनाकर उनके प्रति भक्त का अनन्य अनुराग जागृत करना; इष्ट की महत्ता व भक्त की लघुता प्रतिपादित करना तथा दैन्य भक्ति के रूप में आचरण को श्रेष्ठता का सन्देश देना है; स्वर्ग-नरक के उल्लेख तथा पूर्व जन्म-जन्मान्तरों की कथा-वर्णन के मूल में जैन कर्म सिद्धान्त की प्रतिष्ठापना करना है। इस प्रकार त्रिवर्ग के साधन द्वारा मोक्ष पुरुषार्थ की साध्यता ही जैन महाकाव्यों का अभीष्ट प्रतिपाद्य है। इन महाकाव्यों में पौराणिक परम्परा के अनुपालन के साथ ही नवीनता की झलक भी मिलती है। वीरायन', 'बन्धनमक्ति' तथा श्रमण भगवान् महावीर चरित्र' में वर्ग-संघर्ष, शोषण के विरोध, आततायियों की भर्त्सना, सामाजिक विद्रूपता तथा मानव को स्वार्थ प्रवृत्ति आदि के चित्रण में आधुनिक मानववादी स्वर प्रबल हैं / हिन्दी जैन महाकाव्यों में प्रेम और शृंगार के चित्रों को सीमित रूप में ग्रहण किया गया है / कथ्य के अनुरोध से प्रधानता शान्त तत्श्चात् भक्ति रस की है, शेष सभी रस शान्त रसावसित हैं। महाकाव्यों का कला पक्ष या शिल्प संगठन भी उदात्त व वैविध्यपूर्ण है। इनकी सृजनात्मक प्रेरणाओं के अन्तर्गत गरिमामयी भारतीय (मुख्यतः जैन) संस्कृति का पुनरुत्थान, युगपुरुष तीर्थंकरों की चारित्रिक गरिमा का निरूपण, वर्तमानयुगीन समस्याओं के समाधान की चेष्टा तथा मानव के उज्ज्वल भविष्य की महती आकांक्षा प्रधान है। आधुनिक हिन्दी जैन महाकाव्यों की संख्या और सफलता को देखते हुए कुछ विद्वानों का यह आरोप कि “अब महाकाव्यों का कोई भविष्य नहीं" सारहीन-सा लगता है। जैसे-जैसे आगम स्रोतों का दोहन होगा, जैन कथाएं लोकमानस में प्रतिष्ठित होंगी और शलाकापुरुषों की चारित्रिक गरिमा से सम्बन्धित बद्धमूल धारणाओं में परिवर्तन आएगा, सरस एवं उत्कृष्ट जैन महाकाव्यों के सजन को सम्भावनाएं बढ़ती जाएंगी। समय-समय पर होने वाले महत्त्वपूर्ण तथा राष्ट्रव्यापी धार्मिक अनुष्ठानों से भी काव्यसर्जकों को प्रेरणा प्राप्त होगी। यह सत्य है कि महाकाव्य के रूपविधान में पर्याप्त अन्तर आया है और आज भी वह रचनात्मक परिवर्तनों का मुखापेक्षी है पर इस सत्य से वैमत्य नहीं हो सकता कि महाकाव्य सर्वोत्कृष्ट काव्यरूप है, युग की चरम उपलब्धि है, कवि के यश का आधार है और इन विशिष्टताओं के कारण उसका भविष्य अत्यन्त उज्ज्वल है। जैन महाकाव्य और समाज चेतना संस्कृत जैन महाकाव्यों के निर्माण की दिशाओं पर व्यापक विचार विमर्श के उपरान्त डॉ. मोहनचंद ने अपने शोध प्रबन्ध "जंन संस्कृत महाकाव्यों में प्रतिपादित सामाजिक परिस्थितियाँ" में यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है संस्कृत जैन महाकाव्य भी जन संस्कृति को सामुदायिक वर्गचेतना से प्रभावित होकर निर्मित हुए हैं। महाकाव्य विकास की विश्वजनीन प्रवृत्ति के अनुरूप ही प्राचीन भारतीय महाकाव्य परम्परा का निर्माण हुआ है तथा संस्कृत जैन महाकाव्यों का भी इसी सन्दर्भ में मूल्यांकन किया जा सकता है। 8 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी ई. के सामन्तयुगीन मध्यकालीन भारत से सम्बद्ध लगभग 16 संस्कृत जैन महाकाव्य महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों की दृष्टि से सफल महाकाव्य होने के अतिरिक्त इनमें युगीन चेतना के अनुरूप सामाजिक परिस्थितियों के प्रतिपादन की पूर्ण क्षमता विद्यमान है। 0 सम्पादक जैन साहित्यानुशीलन 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210245
Book TitleAdhunik Hindi Jain Mahakavya sima aur Sambhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndu Rai
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size588 KB
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