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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा है कि यदि न्यूट्रिन कणों को किसी दीवार की ओर छोड़ा जाय तो वे दीवार को पार कर अन्तरिक्ष में विलीन हो जाते हैं, कोई भी भौतिक वस्तु उन्हें रोक नहीं सकती । इन न्यूट्रिन कणों को पुनः भौतिक वस्तु के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है ।
परामनोविज्ञान के अनुसार यह सूक्ष्म शरीर किसी भी स्थान पर किसी भी दूरी और परिमाण में अपने को प्रकट व पुनर्लय कर सकता है ।
चिन्तन के विविध बिन्दु ४५२
ईसाइयों के पवित्र आत्मा (होली घोस्ट) के ही समकक्ष श्री अरविन्द ने 'साइके' (PSYCHE) का साक्ष्य दिया है, जिसे 'चैत्य-पुरुष' कहा जाता है, जो कि आत्मा और परमात्मा को जोड़ने वाली एक माध्यमिक कड़ी है। सारे सृजन इस चेत्य पुरुष में से ही आते हैं प्राण-चेतना के गहिरतर स्तरों पर घटित होने वाला उन्मेष या आवेश विधायक, सर्जनात्मक, मंगल कल्याणकारी होता है, वह अतीन्द्रिक होता है, या इन्द्रियेतर ज्ञान-चेतना का प्रतिफलन होता है |
मरणोत्तर जीवन और पारलौकिक आत्माओं के साथ सम्पर्क सम्प्रेषण के जो "सियांस" होते हैं, उनमें भी एक संवेदनशील माध्यम के शरीर में मृतात्माओं का आह्वान किया जाता है। सहसा ही माध्यम आविष्ट हो उठता है, उसे अर्ध मूर्छा-सी आ जाती है, तब स्वर्गस्थ आत्माएँ उसके शरीर और चेतना पर अधिकार कर अनेक सुपे रहस्य बताती हैं, भविष्यवाणियों करती हैं, पर लोकों का परिचय देती हैं। विश्व-विख्यात काम-वैज्ञानिक और मनीषी हेवलाक एलिस इन 'सियांस' तथा 'प्लेंट' में अनुभव लेकर आत्माओं के अस्तित्व पर विश्वास करने लगे थे, ओलीवर लाज जैसा शिसरस्थ वैज्ञानिक परलोकवादी हो गया था। उसने स्वयं भूत-प्रेतों तथा अतिभौतिक घटनाओं के अनुभव के अनेक साक्ष्य प्रस्तुत किये थे।
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इस सम्बन्ध में कनाडा के प्रसिद्ध स्नायु-सर्जन डा० पेनफील्ड के प्रयोग चिरस्मरणीय रहेंगे ( रीडर्स डाइजेस्ट, सितम्बर, १९५८), जिन्होंने सिद्ध किया कि मस्तिष्क में सूक्ष्म शरीर नित्य बना रहता है, केवल स्थूल शरीर ही विनाशशील है ।
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लन्दन के प्रोफेसर विलियम क्रक्स जो प्रसिद्ध रसायन शास्त्री थे, ने परलोक, पुनर्जन्म तथा आत्मा सम्बन्धी ज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन किया और अपनी जाँच को प्रकाशित कराया— अपनी पुस्तक "रिसचेंज इन स्प्रिीचियुलिज्म' में
परान्वेषण में पाश्चात्य वैज्ञानिक डा० मायर्ज, फक पोडमोर, अलफ्रेड वालेस, प्रो० आक्साक्फ, रिचर्ड होडजेसन आदि अपनी प्रामाणिकता के लिये प्रसिद्ध थे, और इन लोगों ने सन् १८८५ में वैज्ञानिक पद्धति से प्लेनचिट की सहायता से तत्सम्बन्धी सत्य का शोध करने के लिये इंग्लैण्ड में एस० ० पी० आर० नामक मानसिक शोध संस्थान की स्थापना की थी ।
हेग के डा० माल्य और जेस्ट ने परलोकवत जीवों के साथ वार्तालाप करने के लिये डायना मिस्टोग्राफ नामक यन्त्र आविष्कृत किया और इसकी मदद से बिना किसी माध्यम के परलोकगत जीवों के सन्देश पाये ।
ऐंड्र जैक्सन के अनुसार प्राणमय सूक्ष्म शरीर (आत्मा) की तौल १ औंस हो सकती है । पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने इस सूक्ष्म शरीर को एक्टोप्लाज्म की संज्ञा दी ।
कैलिफोर्निया के आर्थर ए० बैल ने यह प्रमाणित किया है कि शरीर की विभिन्न जीवन
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