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साधना का महायात्री : श्री समन मनि
उपनिषद् में भी कहा है कि "आत्मानि विज्ञाते सर्व- बाहर से पर्दा हटाता है और अन्दर की ओर ले के जाता मिदं विज्ञातं भवति" -जो आत्मा को जान लेता है उसे है। जैसे पक्षी दिनभर आकाश में उड़ता रहता है और साँझ सर्व ज्ञात हो जाता है। यहाँ जानने का अर्थ अनुभूति है। को अपने घौंसले में आ जाता है वैसे ही विभाव से हटकर जब यह अनुभूति होती है, तब साधक संसार के माया, स्वभाव में आ जाना ही ध्यान है। ध्यान एक दीपक है जो मोह, संयोग, वियोग से ऊपर उठ जाता है और सबको अन्तर के आलोक को प्रकाशित करता है। ध्यान एक जानकर अपने आत्मभाव में रमण करता है।
पवित्र गंगा है, जिसके पास बैठकर तुम स्नात हो सकते ज्ञाता-द्रष्टा भाव की साधना है - ध्यान
हो। ध्यान एक कल्पवृक्ष है, जिसके नीचे बैठकर के आप
आनन्द के आलोक तक जा सकते हो। ___ ध्यान की जागृत अवस्था आनन्दमयी होती है, यह प्रगति का सोपान है, इस अवस्था में सत्य का सबेरा होता
सामायिक ही ध्यान है - भगवान् महावीर के शब्दों है। ज्ञान आदित्य का उदय होता है। तब आत्मा अपने ___ में सामायिक ही ध्यान है। उन्होंने सामायिक व ध्यान को स्वरूप का बोध प्राप्त करके जाग उठती है। उसके जीवन ___अलग नहीं कहा । सम्+आय+इक = सामायिक अर्थात् - में "सच्चं खु भगवं" की ज्योति जगमगाने लग जाती है। समता ही ध्यान है। भगवान् महावीर ने ठाणांग सूत्र के उस आत्म-ज्योति के दर्शन होते ही हृदय की सभी ग्रन्थियाँ । चौथे ठाणे में ध्यान के चार भेद बताये हैं - आर्त, रौद्र, विलीन हो जाती है और उसके सब संशय समूल क्षीण हो धर्म एवं शुक्ल । उनमें आर्त और रौद्र भी ध्यान है, जाते हैं। कहा है कि -
लेकिन वह गलत है, वासनाओं से भरा हुआ निगेटिव है।
वह संसार की ओर ले जायेगा। धर्म और शुक्ल आपको भियते हृदय ग्रन्थिर्छिद्यते सर्व संशयाः।
परमार्थ की ओर ले जाएगा। क्षीयन्ते चास्य कर्माणि, तस्मिन् द्रष्टे परावरे।।
स्वाध्याय व ध्यान का स्वरूप-ध्यान का अर्थ आँखें अव प्रश्न समुपस्थित होता है कि हम ध्यान कैसे
बन्द करना नहीं होता। ध्यान का अर्थ है - अपने स्वरूप करे? ध्यान क्या है? ध्यान क्यों करें?
में आ जाना। वस्तुतः भगवान् महावीर की साधना, उनका ध्यान क्या है?
ज्ञान, आचरण एवं तप को जीवन में स्थापित करना है तो ध्यान है - अमन की स्थिति। ध्यान है - मन का। वह एक ही धारा है, वह है - स्वभाव और ध्यान। हम शून्य हो जाना। ध्यान है- मन का सध जाना। ध्यान है - दोनों को अलग नहीं कर सकते। दो ही पंख है, दो ही चेतना का ऊवारोहण। ध्यान है- अंतर का स्नान। ध्यान पहिये है - गाड़ी के। स्वाध्याय का अर्थ ही ध्यान होता है। है - चित्त की शुद्धि। ध्यान है - विकारों से हटकर निर्मल और ध्यान का अर्थ ही स्वाध्याय होता है। सामायिक का हो जाना। ध्यान है - अन्तर में प्रवेश। ध्यान ही मुक्ति मतलब ही ध्यान होता है और ध्यान का मतलब ही सामायिक का द्वार है। ध्यान ही अंतर की जागरुकता है। ध्यान होता है, स्वाध्याय का अर्थ कुछ बोलना, धर्मकथा करना है- अहिंसा, संयम व तप रूपी त्रिवेणी की साकार अनुभूति इतना ही स्वाध्याय नहीं होता। स्वाध्याय का अर्थ अपने के साथ जीवन जीना। ध्यान अंतर की खोज है। ध्यान को जान लेना है। स्व का चिन्तन, मनन करते हुए अनुशीलन
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आत्मसाक्षात्कार की कला - ध्यान
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