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आचार्य हरिभद्र सूरि और उनका योग-विज्ञान / १०१
माने जाते हैं। उनमें से भी यदि छटाई की जाय तो प्राप्य श्रप्राप्य लगभग पचास ग्रन्थ ऐसे हैं जिन्हें प्राचार्य हरिभद्र रचित माना जाना शंकास्पद नहीं है । "
श्राचार्य हरिभद्र- रचित ग्रन्थों को सामान्यतः पाँच भागों में विभक्त किया जा सकता है
१. श्रागम - व्याख्याएँ,
२. कथाकृतियाँ,
३. धर्म व दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थ,
४. योगशास्त्र, एवं
५. अन्य ग्रन्थ ।
१- आगम व्याख्याएँ
प्राचार्य हरिभद्र जैन आगमों पर संस्कृत में टीका लिखने वाले सबसे प्रथम विद्वान् हैं । इनके द्वारा प्रणीत 'आवश्यक - बृहद्वृत्ति' 'दशवैकालिक - बृहद्वृत्ति' आदि आगमिक टीकाएँ प्रसिद्ध हैं ।
२. कथाकृतियाँ
आचार्य हरिभद्र रचित स्वतंत्र कथाकृतियों के नाम हैं- 'समराइच्चकहा' तथा 'धूर्ताख्यान' ।
३. धर्म व दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थ
आचार्य हरिभद्र ने अनेकान्त पर 'अनेकान्तजयपताका', 'अनेकान्तवादप्रवेश' दोनों सटीक तथा 'अनेकान्तप्रघट्ट' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ रचे हैं । इनके अतिरिक्त आचार्य हरिभद्र का भारतीय षड्दर्शनों की विवेचना करने वाला एक प्रसिद्ध ग्रन्थ 'षड्दर्शनसमुच्चय' है । 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' नामक एक दार्शनिक ग्रन्थ भी इनका प्रसिद्ध है । 'धर्मसंग्रहणी' एवं 'लोकतत्त्वनिर्णय' नामक ग्रन्थ भी प्राचार्यश्री के लिखे हुए प्राप्त होते हैं ।
'जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार' नामक ग्रन्थ में प्राचार्य हरिभद्र रचित दार्शनिक जिन ग्रन्थों का उल्लेख है, वे इस प्रकार हैं
तत्त्वतरंगिणी, त्रिभंगीसार, न्यायावतारवृत्ति, पंचलिंगी, द्विजवदनचपेटा, परलोकसिद्धि, वेदबाह्यतानिराकरण, सर्वज्ञसिद्धि तथा स्याद्वादकुचोद्यपरिहार | 2
आचार्यश्री ने प्रसिद्ध बौद्ध श्राचार्य दिङ्नाग रचित 'न्यायप्रवेश' पर एक 'न्यायप्रवेशटीका' भी लिखी है ।
४. योगशास्त्र
प्राचार्य हरिभद्र ने भारतीय योग-विद्या के क्षेत्र में अपूर्व देन दी है । श्राचार्य श्री के
१. डॉ० छगनलाल शास्त्री, 'समराइच्चकहा', प्रस्तावना - पृ० १५
२. पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य द्वारा लिखित 'जैनदर्शन', श्री गणेशवर्णी जैन ग्रन्थमाला काशी, १९६६, 'जैन दार्शनिक साहित्य' – पृ० ५८५
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आसमस्थ तम आत्मस्थ मन
तब हो सके आश्वस्त जन
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