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________________ अनान Jain Education International पंचम खण्ड / ११४ भारतीय योग-दर्शन के लिए आचार्य हरिभद्र की देन भारतीय षड्दर्शनों में योग एक महत्वपूर्ण दर्शन है। अन्य दर्शनों के समान योग का भी चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है । वैदिक, बौद्ध एवं जैन - इन तीनों भारतीय परम्पराम्रों ने अपनी-अपनी दृष्टि से योग का विकास किया है। प्राचार्य हरिभद्र विक्रम की ८ व ९ वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण दार्शनिक एवं साहित्यकार हैं। उन्होंने तुलनात्मक योग विज्ञान के क्षेत्र में अतिशय योगदान किया है। हमने उनके द्वारा रचित योग-दर्शन के ग्रन्थों का जो धनुशीलन उपस्थित किया है, उससे प्राचार्य हरिभद्र की भारतीय योगदर्शन के लिए अद्भुत देन प्रतीत होती है। हम यहाँ संक्षेप में उसका वर्णन उपस्थित करते हैं १. यद्यपि प्राचीन जैन श्रागमों में योग-विद्या के सूत्र बिखरे रूप में पाए जाते हैं, किन्तु उन्हें एकत्र कर योग विद्या का नाम देकर ग्रन्थ के रूप में उपस्थित करने का सबसे प्रथम श्रेय श्राचार्य हरिभद्रसूरि को है। २. प्राचार्य हरिभद्र सूरि ने अपने योगविषयक ग्रन्थों में जिन महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है, वे इस प्रकार हैं- (क) जैनदृष्टि से योग की परिभाषा, स्वरूप, भेद एवं उसका चरम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति । (ख) योग के अधिकारी और अनधिकारी का वर्णन । (ग) योग की साधना का स्वरूप । (घ) योग साधना के अनुसार साधकों का वर्गीकरण, स्वरूप एवं अनुष्ठान (ड) योग-साधना के उपाय - साधन और भेदों का वर्णन । ३. प्राचार्य ने योग की म्राठ दृष्टियों में प्रारंभ से लेकर अन्त तक की समस्त जैन आचार-परम्परा का समावेश कर योग को पूर्णतः जैनधर्म से प्रभिन्न स्वरूप प्रदान किया है। ४. प्राचार्य हरिभद्र सूरि ने अपने ग्रन्थों में जो योग के स्वरूप, उद्देश्य प्रक्रिया आदि का वर्णन किया है, उससे जैन योगदर्शन नामक एक विशिष्ट दर्शन के स्वरूप की स्थापना उद्बुद्ध हुई है। ५. पश्चावर्ती अनेक माचायों ने, जिनमें प्राचार्य हेमचन्द्र आचार्य शुभचन्द्र एवं उपाध्याय यशोविजय के नाम प्रमुख हैं, प्राचार्य हरिभद्र सूरि के जैन योगदर्शन का अनुसरण कर उसे विविधरूप में पल्लवित एवं पुष्पित किया है। ६. वर्तमान समय में प्राचार्य तुलसीगणि, युवाचार्य महाप्रज्ञ यादि मनीषियों द्वारा जो जैनयोग की साधना एवं उसका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, उसके लिए हमें निःसंदेह १. देखिए डॉ० नथमल टांटिया , एम० ए०, डी० लिट् का निबन्ध "प्राचार्य हरिभद्र कम्पेरेटिव स्टडीज इन योग" ग्रन्थ प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ, प्रकाशक - श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, १९५६ अंग्रेजी विभाग, पृ. १२९. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210202
Book TitleHaribhadrasuri aur unka Yoga Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & Yoga
File Size2 MB
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