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विगय। धृत, तेल, दूध, दही, गुड़ आदि में एक या दो प्रतिदिन कम करना ( ४ ) उपानह-चप्पल, बूट, मोजे आदि की संख्या में कमी करना (५) ताम्बूल - पान, सुपारी, चूर्णं, आदि की मर्यादा (६) वस्त्र - प्रतिदिन पहनने की ड्रेसों की संख्या निश्चित करना (७) कुसुम पुष्पों की जाति व इजादि सुगन्धित पदार्थों की मर्यादा (८) वाहन हाथी, घोड़े, ऊंट गाड़ी, रेल, मोटरमा रिक्सा वायुदान आदि चढ़ने के वाहनों की प्रतिदिन संख्या की मर्यादा (२) शयनपर्यक, शय्या की मर्यादा रखना । (१०) विलेपन - केसर, चन्दन, तेल आदि विलेपन की वस्तुओं की मर्यादा ( ११ ) अब्रह्मचर्य - अमुक समय के लिये मैथुन का त्याग करना (१२) दिशा - छह दिशा में यातायात की मर्यादा में और संकोच करना (१३) स्नान - स्नान के जल का नाप-तौल रखना, (१४) भक्त - निश्चित समय के लिये भोजनादि का त्याग । इस व्रत के पाँच अतिचार हैं- (१) आनयन प्रयोग — मर्यादित क्षेत्र से बाहर की वस्तु मँगाना । ( २ ) प्रेष्य प्रयोग - मर्यादित क्षेत्र से बाहर वस्तु भेजना । (३) शब्दानुपात - स्वयं ने जिस क्षेत्र में जाने का त्याग किया हो, वहाँ अन्य व्यक्तियों को शाब्दिक संकेत समझाकर कार्य करना, जैसे- अनुचर एवं टेलिफोन आदि से व्यापार करना । (४) रूपानुपात - मर्यादित क्षेत्र से बाहर अपना चित्र तथा मिट्टी, प्रस्तर, आदि की मूर्ति प्रतिकृति आदि सांकेतिक वस्तुओं के द्वारा कार्य कराना । (५) पुद्गल प्रक्षेप - सीमा से बाहर कंकर, पत्थर, आदि कुछ वस्तु फेंककर किसी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना ।
श्रावकाचार : एक परिशीलन ५४७
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एकादश पौषषोपवास व्रत एवं उसके अतिचार
पौषव्रत का विशिष्ट उद्देश्य है-आत्मा का पोषण करना । जैसे शरीर की तृप्ति का साधन भोजन है वैसे ही पौषध आत्मा की तृप्ति का साधन है । इस व्रत में शरीर के पोषण के सभी साधनों का परित्याग किया जाता है । इस व्रत की साधना करने के लिये श्रमणोपासक अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा आदि एक महिने में निश्चित तिथियों के दिन अष्ट प्रहर आदि अमुक काल के लिये समस्त सांसारिक कार्यों से निवृत्त होता है। इस समय में वह चार प्रकार के आहार का त्याग करता है तथा अब्रह्मचर्य आदि समस्त पापजनक व्यापार का त्याग करके श्रमणवत जीवन साधना करता है। इस व्रत के पाँच अतिचार त्याज्य है वे इस प्रकार हैं- ( १ ) अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखितशय्या संस्तारक (२) अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित शय्या संस्तारक- -इन दोनों का तात्पर्य है पोषधयोग्य स्थान का अच्छी तरह निरीक्षण न करना एवं उसका सम्यक् प्रमार्जन न करना । (३) अप्रतिलेखित दुष्प्रति लेखित उच्चार-प्रस्रवण भूमि - बिना देखे या अच्छी तरह बिना देखे लघुशंका आदि के स्थानों का प्रयोग करना। (४) अप्रमाणित दुष्यमार्जित उच्चार-प्रसवण भूमि - मल-मूत्र त्यागने के स्थान को साफ न करना । (५) पौषधोपवास सम्यगननुपालनता - पौषधोपवास के नियमों का अच्छी तरह से पालन न करना ।
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द्वादश अतिथिसंविभागव्रत एवं उसके अतिचार
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भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवतुल्य माना है। अतिथि का तात्पर्य है जिसके आने की तिथि निश्चित न हो वह अतिथि है । यह एक सामान्य अर्थ है किन्तु जिस अतिथि को देवतातुल्य माना जाय उस अतिथि का विशिष्टार्थ कुछ अन्य ही है । इस व्रत में सर्वोत्कृष्ट अतिथि 'श्रमण' को माना गया है। उन्हें जैनागमों में धर्मदेव के महत्वपूर्ण पद से अलंकृत किया है । श्रमणोपासक बारहवें व्रत में यह नियम अपनाता है कि अपने लिए बनी हुई वस्तु में से एक विभाग अतिथि के लिए रखता है। वह वस्तु चाहे भोजन हो, भवन हो, या वस्त्रादि हो । श्रमण सदैव नहीं आते अत: इस व्रत का उपासक अपने स्वधर्मी अन्य श्रमणोपासकों, दीन-असहायों को भी दान पात्र समझता है। किन्तु सर्वोत्कृष्ट अतिथि श्रमण को ही माना है। आचार्य श्री उमास्वाति ने तत्वार्थसूत्र में इस सर्वोत्कृष्ट पात्र के उद्देश्य से ही इस व्रत में दान की विशेष विधि, देय द्रव्य देने वाला दातार एवं दान ग्रहण करने वाला सत्पात्र इन चार विषयों की विशेषता के कारण दान भी विशिष्ट माना है । २" जैसे उपजाऊ धरती में बोया गया बीज अनेकगुणा फल देता है। दान लेने वाले सत्पात्र की अपेक्षा इस व्रत से दाता को भी अधिक लाभ है इसीलिये तत्वार्थसूत्रकार ने अतिथिसंविभागवत का विवेचन करते हुए बताया है कि दाता "अपने अनुग्रह के लिए वस्तु पर स्व का उत्सर्ग करता है अर्थात् ममत्व का त्याग कर निस्वार्थ भाव से जो वस्तु देता है वह दान है ।"२९ ऐसे निस्वार्थ भाव से देनेवाले मुधादानी एवं निस्वार्थ भाव से लेनेवाले मुधाजीवी दोनों ही महाघं एवं अतिदुर्लभ है। ऐसे दान दाता और दान लेनेवाले दोनों ही सद्गति के अधिकारी बनते हैं। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं। दान के इन पाँच दोषों को देखने से ही यह ज्ञात होता है कि अतिथिसंविभागव्रत में दिये गये दान का वास्तविक अधिकारी श्रमण है, जो मोक्षमार्ग का साधक है एवं स्वपर का उद्धारक है। फिर भी अनुकम्पा से अन्य को देने का निषेध नहीं है ।
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