________________ दर्शन-दिग्दर्शन रूप देकर महोत्सव के रूप में मनाने का निर्देश दिया है। __संल्लेखना में 'लेखन' शब्द मुख्यार्थ है। इसका अर्थ है शीर्ष और शांत करना। जीवन के अन्तिम क्षणो में सावधानी पूर्वक चलना वस्तुतः संल्लेखना व्रतराज है। इसमें शरीर और कषाय को क्रमशः कृश और कमजोर किया जाता है। दरअसल काय और कषाय कर्मबंध का मेरुदण्ड है इसे कृश करना ही कषाय है। संल्लेखना को दो रूपो में विभक्त किया गया है। यथा - 1) काय संल्लेखना या बाहय संल्लेखना। 2) कषाय संल्लेखना या आभ्यन्तर संल्लेखना। अनशन व्रत साधना से काय कृश किया जाता है आभ्यंतर कषायों को पुष्ट करने के कारणों को क्रमश कृश करना होता है। इससे अतमानस मे किसी प्रकार की कामना नहीं रहती। जागतिक कामना जब समाप्त हो जाती है तब सिद्ध कामना सम्पूर्ण होती है। संदर्भ ग्रंथ 1) आवश्यक सूत्र 2) आवश्यक नियुक्ति 3) उत्तराध्ययन सूत्र 4) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश 5) तत्त्वार्थ सूत्र 6) तत्त्वार्थ वृत्ति 7) दशवैकालिक 8) नन्दि सूत्र 6) प्रवचन सारोद्धार 10) प्रज्ञापना सूत्र 11) भगवती शतक Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org