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________________ चतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य निर्देश किया है-आचार, अग्र, प्रकल्प, चलिका और निशीथा६७ स्त्यानर्द्धि निद्रा का स्वरूप बताते हए चर्णिकार कहते हैं इन सबका निक्षेप-पद्धति से विचार करते हुए निशीथ का अर्थ कि जिसमें चित्त थीण अर्थात् स्त्यान हो जाए-कठिन हो जाएइस प्रकार बताया गया है--निशीथ इति कोऽर्थः? निशीथ- जम जाए वह स्त्यानर्द्धि निद्रा है। इस निद्रा का कारण अत्यंत सद्दपट्ठीकरणत्थं वा भण्णति-- दर्शनावरण कर्म का उदय है -- इद्धं चित्तं तं थीणं जस्स जं होति अप्पगासं तं तु णिसीहं ति लोगसंसिद्ध। अच्चंतदरिसणावरणकम्मोदया सो थीणद्धी भण्णति। तेण य जं अप्पगासधम्म, अण्णं पि तयं निशीधं ति।। थीणेण ण सो किंचि उवलभति।७२ स्त्यानद्धि का स्वरूप विशेष स्पष्ट करने के लिए आचार्य ने चार प्रकार के उदाहरण दिए हैंजमिति अणिदिटुं। होति भवति। अप्पगासमिति अंधकारं। पुद्गल, मोदक, कुंभकार और हस्तिदंत। तेजस्काय आदि की जकारणिद्देसे तगारो होइ। सद्दस्स अवहारणत्थे तुगारो। अप्पगा व्याख्या करते हुए चूर्णिकार ने 'अस्य सिद्धसेनाचार्यों व्याख्या सवयणल्स णिण्णयत्थे णिसीहंति। लोगे वि सिद्धं णिसीहं अप्पगासं। जहा कोइ पावासिओ पओसे आगओ, परेण बितिए करोति, एतेषां सिद्धसेनाचार्यों व्याख्यां करोति, इमा पुण सागणिय णिक्खितदाराण दोण्ह वि भद्दबाहुसामिकता प्रायश्चित्तव्याख्यानगाथा, दिणे पुच्छिओ कल्ले के वेलमागओ सि? भणति णिसीहे त्ति एयस्स इमा भद्दबाहुसामिकता बक्खाणगाहा' आदि शब्दों के रात्रावित्यर्थः।८ निशीथ का अर्थ है अप्रकाश अर्थात् अंधकार। साथ भद्रबाहु और सिद्धसेन के नामों का अनेक बार उल्लेख अप्रकाशित वचनों के निर्णय के लिए निशीथसूत्र है। लोक में भी किया है। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय निशीथ का प्रयोग रात्रि-अंधकार के लिए होता है। इसी प्रकार और त्रसकायसंबंधी यतनाओं, दोषों, अपवादों और प्रायश्चित्तों निशीथ के कर्मपंकनिषदन आदि अन्य अर्थ भी किए गए हैं। भावपंक का प्रस्तुत पीठिका में अति विस्तृत विवेचन किया गया है। का निषदन तीन प्रकार का होता है--क्षय, उपशम और क्षयोपशम। खान, पान, वसति, वस्त्र, हलन, चलन, शयन, भ्रमण, भाषण, जिसके द्वारा कर्मपंक शांत किया जाए वह निशीथ है।६९ गमन, आगमन आदि सभी आवश्यक क्रियाओं के विषय में __ आचार का विशेष विवेचन करते हुए चूर्णिकार ने नियुक्ति आचारशास्त्र की दृष्टि से सूक्ष्म विचार किया गया है। -गाथा को भद्रबाहु स्वामिकृत बताया है। इस गाथा में चार प्राणातिपात आदि का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार ने मृषावाद प्रकार के पुरुष प्रतिसेवक बताए गए हैं जो उत्कृष्ट, मध्यम के लौकिक और लोकोत्तर--इन दो भेदों का वर्णन किया है तथा अथवा जघन्य कोटि के होते हैं। इन पुरुषों का विविध भंगों के लौकिक मृषावाद के अंतर्गत मायोपधि का स्वरूप बताते हुए चार साथ विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसी प्रकार स्त्री और धूर्तों की कथा दी है। इस धूर्ताख्यान के चार मुख्य पात्रों के नाम नपुंसक प्रतिसेवकों का भी स्वरूप बताया गया है। यह सब हैं-शशक, एलाषाढ, मूलदेव और खंडपाणा। इस आख्यान का निशीथ के व्याख्यान के बाद किए गए आचारविषयक प्रायश्चित्त के विवेचन के अंतर्गत है। प्रतिसेवक का वर्णन समाप्त करने सार भाष्यकार ने निम्नलिखित तीन गाथाओं में दिया है-- के बाद प्रतिसेवना और प्रतिसेवितव्य का स्वरूप समझाया गया सस-एलासाढ मूलदेव खंडा य जुण्णउज्जाणे। है। प्रतिसेवना के स्वरूप वर्णन में अप्रमादप्रतिसेवना, सहसात्करण, सामत्थणे को भत्तं, अक्खातं जो ण सद्दहति॥294॥ चोरभया गावीओ, पोट्टलए बंधिऊण आणेमि। प्रमादप्रतिसेवना, क्रोधादि कषाय, विराधनात्रिक, विकथा, इंद्रिय, निद्रा और अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन किया गया तिलअइरुढकुहाडे, वणगय मलणा य तेल्लोदा॥295। वणगयपाटण कुंडिय, छम्मासा हत्थिलग्गणं पुच्छे। है। निद्रा-सेवन की मर्यादा की ओर निर्देश करते हए चर्णिकार रायरयग मो वादे, जहिं पेच्छइ ते इमे वत्था।।296॥ ने एक श्लोक उद्धृत किया है जिसमें यह बताया गया है कि आलस्य, मैथुन, निद्रा, क्षुधा और आक्रोश-ये पाँचों सेवन करते चूर्णिकार ने इन गाथाओं के आधार पर संक्षेप में धूर्तकथा रहने से बराबर बढ़ते जाते हैं-७१ देते हुए लिखा है कि शेष बातें धुत्तक्खाणग (धूर्ताख्यान) के अनुसार समझ लेनी चाहिए--सेसं धुत्तक्खाणगानुसारेण पञ्च वर्धन्ति कौन्तेय! सेव्यमानानि नित्यशः। णेयमिति। यहाँ तक लौकिक मृषावाद का अधिकार है। इसके आलस्यं मैथुनं निद्रा, क्षुधाऽऽक्रोशश्च पञ्चमः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210168
Book TitleAgamik Churniya aur Churnikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Agam
File Size2 MB
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