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________________ 000000000000 000000000000 40000DLODD 8830 0000 Jain Education International २९६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ शब्द नय अवक्तय है । बन्ध किस प्रकार से हो रहा है, यह प्राणी के अनुभव की बात हैं । कथन से उसे नहीं जाना जा सकता । अनुयोगद्वार सूत्र और पट्डागम के उपर्युक्त विवेचन देखने के पश्चात् नयों के विषय में सहज ही निम्ना कित निष्कर्ष प्रकट होता है नंगम नय १. प्रस्थक के दृष्टान्त में प्रस्थक बनाने की अनेक क्रियाओं में से कोई भी क्रिया । २. वसति के दृष्टान्त में बसने के अनेक स्थानों में से कोई भी स्थान । ३. प्रदेश के दृष्टान्त में प्रदेश की ६ की संख्या । ४. वेदना-नय विभाषणता में निक्षेप का प्रत्येक भेद अथवा अनेक भेद । ५. वेदना नाम विधान में आठों कर्मों की वेदनाएँ । ६. वेदना - प्रत्यय विधान में वेदना का प्राणातिपात आदि प्रत्येक प्रत्यय । ७. वेदना - स्वामित्व विधान में जीव व नोजीव व इनके बहुवचनान्त बनने वाले भेद । ८. वेदना-वेदन विधान में आठों ही कर्मों में से प्रत्येक कर्म वेदना की बध्यमान, उदीर्ण, उपशान्तदशा के २६ भंगों में से प्रत्येक भंग । ६. वेदना - गति विधान में आठों ही कर्मों में से प्रत्येक कर्म वेदना की स्थित, अस्थित व स्थित अस्थित अवस्था १०. वेदना - अन्तर विधान में आठों ही कर्मों में से प्रत्येक कर्म की वेदना अनन्तर, परम्परा तथा तदुभय रूप भेद नैगम नय है । उपर्युक्त कथनों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि नैगम नय अनेक भेदों व उन भेदों में से प्रत्येक भेद का कथन है, अर्थात् विकल्प रूप कथन नैगम नय है । व्यवहार नय उपर्युक्त नैगम नय के कथन के साथ प्रायः सभी स्थलों पर व्यवहार नय का भी वैसा ही कथन है । केवल कुछ कथनों में अन्तर हैं, वे निम्नांकित हैं— १. प्रदेश के दृष्टान्त में पाँच प्रदेश के स्थान पर पंचविध प्रदेश कथन है । २. वेदना-वेदन विधान में नंगम नय में २६ भंग व व्यवहार नय में भंग कम हैं । कारण कि वे भंग तो बनते हैं, परन्तु व्यवहार में वैसा कहीं भी होता नहीं है। इससे इस परिणाम पर पहुँचा जाता है कि जब नैगम नय में वर्णित भेद व भंग या विकल्प का उपचार व्यवहार में होता है, तब वह व्यवहार नय का कथन होता है । इसे समझने के लिये कुछ जोड़ना या आरोपण करना पड़ता है । संग्रह नय नगम व व्यवहार में कथित भेदों, भंगों व विकल्पों में से जो एक जाति के या एक वर्ग के हैं अर्थात् जिनमें समानता पाई जाती है, उनका यहाँ एकत्व रूप संक्षेप में कथन संग्रह नय कहा गया है । ऋजुसूत्र नय ऐसा कथन जिसकी कथनीय विषय-वस्तु प्रत्यक्ष हो और सुनते ही उसका आशय सरलता से सीधा अनायास समझ में आ जाय अर्थात् जिसे समझने के लिए अलग से कुछ जोड़ने का आरोपण का प्रयास न करना पड़े । यहाँ ऐसा कथन ऋजुसूत्र नय कहा गया है। शब्द नय oooooo शब्द के भाव (अर्थ) के रूप में आशय को व्यक्त करने वाला कथन शब्द नय कहा गया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210164
Book TitleAgamkalin Naya Nirupan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Golecha, Kanhaiyalal Lodha
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Naya
File Size2 MB
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