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________________ अनिल कुमार मेहता १७० इन चारों पुरुषार्थी का महत्त्वपूर्ण स्थान था, समाज अनेक विकारों से ग्रस्त था । लोग कर्मसिद्धान्त पर विश्वास करते थे । आर्थिक विवरणों में "अर्थ अनर्थ की जड़" इस उक्ति को चरितार्थ करने वाले अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए नंद नाविक और धर्मरुचि का प्रसंग द्रष्टव्य है । मायादित्यकथा में अर्थ से संबंधित दो सुभाषित पद्य प्रयुक्त हुये हैं । इसी कथा में अर्थोपार्जन के लिये जुआ, चोरी, लूट-पाट आदि को गर्हित' तथा कृषि, धातुवाद, देव आराधना, राजा की सेवा, सागर - सन्तरण आदि धर्मसम्मत उपाय बतलाये गये हैं । अर्थ-प्राप्ति हेतु उस समय लोग हत्या जैसे घृणित कार्य करने में भी संकोच नहीं करते थे । धन के स्थानान्तरण हेतु नकुलक ( बटुए) आदि के उपयोग का भी प्रसंग है । क्रय-विक्रय आदि के वर्णन संक्षिप्त हैं । धार्मिक एवं दार्शनिक महत्व : जैसा कि पूर्व में ही कहा जा चुका है कि इन कथाओं को धार्मिक भावना से प्रेरित होकर लिखा गया है । अतः स्वाभाविक है कि इनमें धर्म, दर्शन और अध्यात्म के वर्णन निश्चित रूप से हुये ही हैं । इन कथाओं का प्रमुख उद्देश्य मानव में नैतिक सिद्धान्तों का संचरण करना और उसे मानसिक एवं वैचारिक दृष्टि से शुद्ध बनाना है । इस अधिकार के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसमें राग आदि अनर्थ परम्पराओं का वर्णन हुआ है । इन कथाओं में कषायरूपी राग-द्वेषात्मक उत्तापों के विस्तृत रूपों क्रोध, मान, माया एवं लोभ को ही मुख्य रूप से चित्रित किया गया है। इन कषायों के दुष्परिणामों के वर्णन उद्देश्य से ही इन उपदेशप्रद कथाओं की रचना हुई है। राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया और लोभ के प्रतिनिधित्व करने वाले पात्रों के नाम क्रमशः वणिक्-पत्नी, नाविक नंद और धर्मरुचि साधु, चंडभट, चित्र-सम्भूति, मायादित्य, लोभनंदी और शिव- शिवभद्र तथा उनकी बहिन है यद्यपि इन कषायों में प्रवृत्ति रखने वाले इन पात्रों को दुःख प्राप्ति होना ही बताया है तथापि तप-संयम, पश्चात्ताप आदि द्वारा उनके लिये पुनः मुक्ति प्राप्ति भी बताई गयी है । सारांशत इन कषायों पर विजय प्राप्ति के लिये ही मानव को प्रेरित किया गया है । इसके अतिरिक्त इन कथाओं में कर्म सिद्धान्त का भी मुख्य रूप से प्रतिपादन हुआ हैं। प्रत्येक पात्र, चाहे वह सत्कर्मी हो या दुष्कर्मी, उसको अपने कर्मानुसार परिणामों प्राप्ति होना अवश्य बताया गया है । उदाहरणार्थ:- वणिक्-पत्नी, नंद नाविक आदि अपने दुष्कर्मों के कारण अनंत संसार का भागी बताया गया है । दूसरी ओर गंगादित्य प्रायश्चित्त कर लेने व धर्मरुचि मुनि द्वारा अपने पूर्वकृत कर्मों की प्रत्यालोचना कर लेने उन्हें स्वर्ग प्राप्त होना भी बताया गया है । इसी प्रकार वणिक् पत्नी, नाविक नंद एवं चित्र सम्भूति की कथाओं में निदानफल अर्थात् सकाम कर्म करने के परिणाम के संबंध में भी वर्णन प्राप्त होता है । निदान बाँधने कारण ही अरिहन्त की पत्नी व नंद नाविक राग एवं द्वेष करते रहते हैं । इसके अतिरिक्त इन कथाओं में और भी १. ( क ) वही पृ० २२३ गाथा २६-२७, (ख) कुवलयमालाकहा, पृ० ५७ अनुच्छेद १६-१७ः Jain Education International भाव के कारण संसार में परिभ्रमण अनेक धार्मिक एवं दार्शनिक तथ्यों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210153
Book TitleAkhyanak Mani Kosh ke 24 ve Adhikar ka Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Mehta
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Story
File Size525 KB
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