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________________ आख्यानकमणिकोश के २४वें अधिकार का मूल्यांकन १६७ प्रस्तुत अधिकार की नाविक नन्द की कथा विशेषावश्यकभाष्य, आवश्यकचूणि, आवश्यकवृत्ति और धर्मोपदेशमालाविवरण से ली गयी है।' चित्र-सम्भूति का आख्यान मूल रूप में उत्तराध्ययनसूत्र के तेरहवें अध्याय में आया है। बौद्ध कथाओं में चित्र-सम्भूत नामक जातक में भी यह कथा वर्णित है। इन दोनों कथाओं में अत्यधिक समानता है । शान्टियर ने अपनी पुस्तक "द उत्तराध्ययनसूत्र' में इन दोनों कथाओं की गाथाओं में भी समानता बताई है। इन दोनों में से उत्तराध्ययन की कथा को प्राचीन माना गया है। आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने इसे अपनी अन्यतम कृति सुखबोधावृत्ति में सम्पूर्ण रूप से प्रस्तुत किया है। उत्तराध्ययनसूत्र की व्याख्याओं तथा सूत्रकृतांगचूणि एवं आवश्यक चूर्णि में भी इस कथा के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इसकी कथावस्तु से साम्य रखती हुई और भी कथाएँ प्राप्त होती हैं, जिनमें से हरिकेशीय की कथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । यह कथा आख्यानकमणिकोशवृत्ति के ३२वें अधिकार तथा जातक के चौथे खण्ड के मातंग जातक में और उत्तराध्ययन के १२वें अध्ययन में विस्तार से वर्णित है। अतः यह तथ्य सुस्पष्ट है कि २४वें अधिकार की इस कथा को अन्य ग्रंथों से ग्रहण कर संक्षेप में यहाँ प्रस्तुत किया गया है। मायादित्य कथा आगम और उसके व्याख्यात्मक साहित्य में अनुपलब्ध है । आठवीं सदी में उद्योतनसुरि द्वारा रचित प्राकृत-चम्पूकाव्य "कुवलयमालाकहा" में इस कथा का विस्तार से वर्णन हआ है।" यह कथा कुवलयमाला में तो गद्य-पद्यात्मक शैली में लिखित है, परन्तु कमणिकोश-वृत्ति में केवल पद्यात्मक शैली में ही लिखी गयी । यद्यपि दोनों कथाओं की कथावस्तु में विशेष अन्तर नहीं है तथापि भाषा एवं काव्य-गुणों की दृष्टि से अनेक विभिन्नताएँ दृष्टिगत होती हैं। फिर भी यह सुनिश्चित है कि वृत्तिकार में कुवलयमाला की मायादित्य-कथा के आधार पर ही नवीन मौलिकता के साथ इस कथा की रचना की है। १. (क) विशेषावश्यक भाष्य गाथा ३५७५ रिषभदेव केसरीमल, रतलाम, १९३६, (ख) आवश्यकचूणि भाग -१, पृ० ५१६-५१७ रिषभदेव केसरीमल, रतलाम, १९२८. (ग) आवश्यकवृत्ति, पृ० ३८९-३९०. (घ) धर्मोपदेशमालाविवरण, पृ० २११, सिंघीजैनग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २८. २. जातक, चतुर्थ खण्ड, संख्या ४९८, पृ० ६००. ३. घाटगे, ए० एम०-एनल्स ऑफ द भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, भाग-१७, पृ० ३४२. ४. (क) उत्तराध्ययनचूर्णि, पृ० १३, २१३-२१४, (ख) उत्तराध १० ३७४-७५, देवीचन्द लालभाई सीरीज, बम्बई, १९१६. (ग) उत्तराध्ययनवृत्ति, (नेमिचन्द्र), (कमलसंयम) पृ० २५४, लक्ष्मीचन्द जैन पुस्तकालय, आगरा, १९२३. पृ० १८५-८७, पुष्पचन्द्र खेमचन्द्र, बलाड़, १९३७. (ध) सूत्रकृतांगचूणि, पृ० १०९. रिषभदेव केसरीमल, रतलाम, १९४१. (ङ) आवश्यचूर्णि भाग-१, पृ० २३१, रिषभदेव केसरामल, रतलाम, १९२८-२९. ५. उपाध्ये, ए० एन०-कुवलयमालाकहा-द्वितीय प्रस्ताव, पृ० १८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210153
Book TitleAkhyanak Mani Kosh ke 24 ve Adhikar ka Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Mehta
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Story
File Size525 KB
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