________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmm m mmmmmmmuTRARAMAIRATRAILIAWAIIA[35] वि. सं. 1634 में पोरवाड ज्ञातीय संघवी के वंशज श्रेष्ठ मेहाजाल ने, प्राचार्य श्री विजयसेनसरिजी द्वारा कराई थी।' मीरपुर सिरोही से प्रणादरा जाते हए, मोटर बस मार्ग पर मेडा आता है, जहाँ से मीरपुर तीर्थ 4 मील दूर है। यह एक प्राचीन तीर्थस्थान है जहाँ पहाड़ के नीचे सुन्दर चार मंदिर हैं। देलवाडा आबू के सदृश, इन मंदिरों का स्थापत्य माना जाता है / इसका दूसरा नाम हमीरगढ है / पारासण (कुम्भारीयाजी) तीर्थ : आबू प्रदक्षिणा का पारासरण (कुम्भारीयाजी) तीर्थ, पाबूरोड से करीब 16 मील है और गुजरात राज्य के अन्तर्गत आता है। इसका अति प्राचीन नाम 'कुन्ती नगरी' था। कहा जाता है कि वि. सं. 370 से 400 के यहां 300 मन्दिर थे / इस समय पांच मन्दिर ११वीं सदी के निमित हैं। सबसे प्राचीन लेख यहां पर वि. सं. 1110 का है। 1. सबसे बड़ा ऊंचा और विस्तृत मन्दिर भगवान् श्री नेमिनाथजी का है जिसके बाह्य भाग में देव देवियों, यक्ष यक्षरिणयों की बड़ी सुन्दर प्राकृतियाँ खुदी हुई हैं तथा मन्दिर के भीतर, शृगार चौकी, रंग मण्डप और सभामण्डप है और गर्भागार में मूलनायक भगवान् श्री नेमिनाथजी की सुन्दर चित्ताकर्षक मूर्ति विराजमान है। वि. सं. 1214 से 1575 के लेख मिलते हैं किन्तु यह मन्दिर पारासरण के मंत्री पासिल का वि. सं. 1174 के करीब निर्माण कराया जाना पाया जाता है। 2. दूसरा कला और कारीगरी का मन्दिर भगवान् श्री महावीर स्वामी का है। इस मन्दिर की कलाकृतियां भव्य और अद्भुत हैं जिनकी समानता देलवाड़ा पाबू के जिनमन्दिरों से की जा सकती है / स्तम्भों पर सुन्दर नत्य मुद्राओं में देव देवियों की मूर्तियाँ अंकित हैं और गंभारा में विचित्र बारीक खुदाई की हुई है। 3. श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर भी बहुत आलीशान है / सभामण्डप में दो बड़े काउस्स ग्गिये हैं जिन पर वि. सं. 1106 के लेख हैं तथा चार स्तम्भों और तोरणों की कलाकृतियाँ अति मनोहर हैं। वि. सं. 1675 में इसकी प्रतिष्ठा हुई तब द्वारों और घुमटों को कलायुक्त बनाया गया था। 4. श्री शान्तिनाथजी के मन्दिर का स्थापत्य, स्तम्भों की रचना, तोरण और छत भी महावीर स्वामी के मन्दिर के सदृश है। प्राचीन लेख वि. सं. 1110 और 1138 के हैं जिससे पाया जाता है कि यह मन्दिर कुम्भारियाजी के मन्दिर में सबसे प्रथम निर्माण हुआ है। 5. श्री सम्भवनाथजी का मन्दिर, अन्य मन्दिरों से कुछ दूरी पर है। कोई लेख इसके निर्माण के विषय में नहीं मिलता। किसी धनी पुरुष का बनाया हुआ करीब 1000 वर्ष प्राचीन मन्दिर है जबकि पारासण और चन्द्रावती नगरी की जाहो-जलाली थी। कुम्भारियाजो के मन्दिर, गुजरात के मंत्री विमलशाह ने निर्माण कराये हैं। इन मन्दिरों को अलाउद्दीन खिलजी ने विध्वंस किये थे और वि. सं. 1675 में जीर्णोद्धार हुआ है। अर्बुदाचल प्रदक्षिणा से 72 गांवों के जिनमें प्रसिद्ध व प्राचीन जैन तीर्थों का उपरोक्त वर्णन किया है जिन-मन्दिर हैं। कुल 71 जिनमन्दिरों के लेखों का संपादन और अनुवाद इतिहास-प्रेमी स्व. मुनिराज श्री जयन्तविजयजी की पुस्तक-अर्बुदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह, आबू भाग-५ में मिलता है। इनमें वि. सं. 744 के प्राचीन लेख को छोड़कर, कुल लेख वि. सं. 1017 से 1977 तक के बीच के हैं। यह पुस्तक वि. सं. 2005 वीर संवत 2475 में श्री यशोविजयजी जैन ग्रन्थमाला भावनगर से प्रकाशित हुई है। 00 1. 'महापुरुष महाजाल नाम, तीर्थ थाप्यु अविचल धाम' [पं. शीलविजयजी रचित तीर्थमाला] 2. जैन तीर्थोनो इतिहास' पू. 330 [लेखक : त्रिपुटी महाराज] માં શ્રી આર્ય કયાણગૌતમ સ્મૃતિ પ્રાંથી રાજી . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org