________________ [ 125 અભધાનરાજેન્દ્રકેશ ઓર ઉસકે પ્રણેતા एवं उनके युगपुरुषत्वका एक अनूठा प्रतीक है / अभिधानराजेन्द्रक्रोशकी रचनाके बाद पं० श्री हरगोविन्ददासजीने पाइयसहमहण्णवो, स्थानकवासी मुनिवर श्री रत्नचन्द्रजी स्वामीने जिनागमशब्दकोश आदि कोश और आगमोद्धारक आचार्यवर श्री सागरानन्दसूरि महाराजने अल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोश आदि प्राकृत भाषाके शब्दकोश तैयार किये हैं, किन्तु इन सबोंकी कोशनिर्माणकी भावनाके बोजरूप आदि कारण तो श्री राजेन्द्रसूरि महाराज एवं उनका निर्माण किया अभिधानराजेन्द्रकोश ही है। विविधकोशनिर्माणके इस युगमें संभव है कि भविष्यमें और भी प्राकृत भाषाके विविध कोशोंका निर्माण होगा ही, फिर भी अभिधानराजेन्द्रकोशकी महत्ता, व्यापकता एवं उपयोगिता कभी भी घटनेवाली नहीं है, ऐसो इस कोशकी रचना है। यह अभियान कोश मात्र शब्दकोश नहीं है, वह जैन विश्वकोश है। जैन शास्त्रोके कोई भी विषयकी आवश्यकता हो, इस कोशमेंसे शब्द निकालते ही उस विषयका पर्याप्त परिचय प्राप्त हो जायगा / आजके जैन-अजैन, पाश्चात्य पौरस्त्य सभी विद्वानों के लिये यह कोश सिर्फ महत्त्वका शब्दकोश मात्र नहीं, किन्तु महत्त्वका महाशास्त्र बन गया है। यही कारण है कि अभिधानराजेन्द्रकोश आज एतद्देशीय और पाश्चात्य देशीय सभी विद्वानों की स्तुति एवं आदरका पात्र बन गया है। [ 'श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ,' ई. स. 1957 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org