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अप्पा सो परमप्पा : डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल उक्त सन्दर्भ में जब हम जनता को जर्नादन (भगवान) कहते हैं तो कोई नहीं कहता कि जनता तो जनता है, वह जर्नादन अर्थात् भगवान कैसे हो सकती है ? पर जब तात्त्विक चर्चा में यह कहा जाता है कि हम सभी भगवान हैं तो हमारे चित्त में अनेक प्रकार की शंकाएँ-आशंकाएँ खड़ी हो जाती हैं, पर भाई, गहराई से विचार करें तो स्वभाव से तो प्रत्येक आत्मा परमात्मा ही है-इसमें शंका-आशंका को कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न-यदि यह बात है तो फिर ये ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान आत्मा वर्तमान में अनन्त दुःखी क्यों दिखाई दे रहे हैं ?
उत्तर–अरे भाई, ये सब भूले हुए भगवान हैं, स्वयं को स्वयं की सामर्थ्य को भूल गये हैं, इसी कारण सुखस्वभावी होकर भी अनन्तदुःखी हो रहे हैं। इनके दुःख का मूल कारण स्वयं को नहीं जानना, नहीं पहचानना ही है । जब ये स्वयं को जानेंगे, पहचानेंगे एवं स्वयं में ही जम जायेंगे, रम जायेंगे, तब स्वयं ही अनन्तसुखी भी हो जावेंगे।।
जिस प्रकार वह रिक्शा चलाने वाला बालक करोड़पति होने पर भी यह नहीं जानता है कि __ 'मैं स्व यं
डपति हैं'-इस कारण दरिद्रता का दुःख भोग रहा है। यदि उसे यह पता चल जाये कि मैं तो करोड़पति हैं, मेरे करोड़ रुपये बैंक में जमा हैं तो उसका जीवन ही परिवर्तित हो जावेगा। उसी प्रकार जब तक यह आत्मा स्वयं के परमात्मस्वरूप को नहीं जानता-पहचानता है, तभी तक अनन्तदुःखी है, जब यह आत्मा अपने परमात्मस्वरूप को भलीभाँति जान लेगा, पहचान लेगा तो इसके दुःख दूर होने में भी देर न लगेगी।
___ कंगाल के पास करोड़ों का हीरा हो, पर वह उसे काँच का टुकड़ा समझता हो या चमकदार पत्थर मानता हो तो उसकी दरिद्रता जाने वाली नहीं है, पर यदि वह उसकी सही कीमत जान ले तो दरिद्रता एक क्षण भी उसके पास टिक नहीं सकती, उसे विदा होना ही होगा। इसी प्रकार यह आत्मा स्वयं भगवान होने पर भी यह नहीं जानता कि मैं स्वयं भगवान हूँ। यही कारण है कि यह अनन्त काल से अनन्त दुःख उठा रहा है। जिस दिन यह आत्मा यह जान लेगा कि मैं स्वयं भगवान ही हूँ, उस दिन उसके दुःख दूर होते देर न लगेगी।
इससे यह बात सहज सिद्ध होती है कि होने से भी अधिक महत्व जानकारी होने का है, ज्ञान होने का है। होने से क्या होता है ? होने को तो यह आत्मा अनादि से ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान आत्मा ही है, पर इस बात की जानकारी न होने से, ज्ञान न होने से ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान होने का कोई लाभ इसे प्राप्त नहीं हो रहा है। होने को तो वह रिक्शा चलाने वाला बालक भी गर्भश्रीमन्त है, जन्म से ही करोड़पति है, पर पता न होने से दो रोटियों की खातिर उसे रिक्शा चलाना पड़ रहा है। यही कारण है कि जिनागम में ज्ञान के गीत दिल खोलकर गाये हैं। कहा गया है कि
"ज्ञान समान न आन जगत में सुख को कारण ।
इह परमामृत जन्म-जरा-मृतु रोग निवारण ।।। इस जगत में ज्ञान के समान अन्य कोई भी पदार्थ सुख देने वाला नहीं है । यह ज्ञान जन्म, जरा और मृत्यु रूपी रोग को दूर करने के लिये परम-अमृत है, सर्वोत्कृष्ट औषधि है।"
१. पंडित दौलतराम : छहढाला, चतुर्थ ढाल, छन्द ४ ।
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