________________ 430 पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ [ खण्ड १-विक्रमोर्वशीय नाट्य चतुर्थ अंक ( कालिदास)। २-प्राकृतव्याकरण ( हेमचन्द्र कृत)। ३-कुमारपालप्रतिबोध ( सोमप्रभाचार्य)। ४-प्रबन्धचिन्तामणि ( मेरुतुंगाचार्य)। ५-प्रबन्धकोश ( राजशेखर ) / ६-प्राकृत पैंगलम् / इनके अतिरिक्त ध्वन्यालोक (आनन्दवर्द्धनकृत), काव्यालंकार (रुद्रट्कृत), सरस्वती काण्ठाभरण (भोजकृत), दशलपक (धनंजय कृत) अलंकार ग्रंथों में भी कतिपय अपभ्रंश के पद्य उपलब्ध होते हैं / इन पदों शृंगार, वीर, वैराग्य, नीति-सुभाषित, प्रकृतिचित्रण, अन्योक्ति, राजा या किसी ऐतिहासिक पात्र का उल्लेख आदि विषय अंकित हुए हैं। इन पद्यों में काव्यत्व है, रस है, चमत्कार है और हृदय को स्पर्श करने की अपूर्व क्षमता है। उपर्यङ्कित विवेचन के आधार पर यह सहज में कहा जा सकता है कि चरित तथा प्रबन्ध-काव्यों के अतिरिक्त अपभ्रंश का खण्ड तथा मुक्तक-काव्य भाव तथा कला की दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। साहित्य के उन्नयन के लिए अपभ्रंश वाङ्मय के स्वाध्याय की आज परम आवश्यकता है / सन्दर्भ-संकेत १-नाट्यशास्त्र 18182 2-(i) भारत का भाषा सर्वेक्षण, डॉ. ग्रियर्सन, 243 / पुरानी हिन्दी का जन्मकाल, श्री काशीप्रसाद जायसवाल, ना०प्र० स०, भाग 8, अंक 2 / (iii) अपभ्रंश भाषा और साहित्य, डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, पृष्ठ 23-25 / / 3-(i) हिन्दी साहित्य का आदिकाल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 20-21 / (ii) तीर्थङ्कर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 4, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ 93 / ४-अपभ्रंश के खण्ड और मुक्तक काव्यों की विशेषताएं, आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', अहिंसावाणी, मार्च-अप्रैल 1977 ई०, पृष्ठ 65-67 / ५-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भाग 2. नेमिचन्द्र जैन. पष्ठ 24 / ६-भविसयत्तकहा का साहित्यिक महत्त्व, डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', जैनविद्या, धनपाल अंक, पृष्ठ 29 / ७-अपभ्रंशसाहित्य, हरिवंशकोछड़, पष्ठ 129 / ८-धनपाल नाम के तीन कवि, जनसाहित्य और इतिहास, पं० नाथूराम प्रेमी, पृष्ठ 467 / ९-अपभ्रंश काव्य परम्परा और विद्यापति, डॉ० अम्बादत्त पन्त, पृष्ठ 249 / १०-साहित्य सन्देश, वर्ष 16, अंक 3, पृष्ठ 90-93 / 11-(1) ध्वन्यालोक 37 / (ii) काव्यमीमांसा, पृष्ठ 114 / १२-जैन शोध और समीक्षा, डॉ. प्रेमसागर जैन, पृष्ठ 58-59 / १३-हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, डॉ० रामकुमार वर्मा, पृष्ठ 83 / १४-संस्कृत टीका के साथ जैनसिद्धान्त भास्कर, भाग 16, किरण दिसम्बर 1949 ई० छपा है। १५-जैन शोध और समीक्षा, डॉ. प्रेमसागर जैन, पृष्ठ 60 / १६-कुमारपाल प्रतिबोध, पृष्ठ 311 / १७-अपभ्रंश साहित्य, हरिवंश कोछड़, पृष्ठ 295 / १८-जैन हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, श्री कामता प्रसाद जैन पृष्ठ 7. / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org