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प्राकृत भाषा का व्याकरणपरिवार
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दूसरी जगह ऐसा भी उल्लेख आता है कि
पाणिनी सूत्रकारं च भाष्यकारं पतञ्जलीम् वाक्यकारं वररुचिम्'। इस प्रकार वररुचि के बारे में भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं।
प्राकृत-प्रकाश में कुल ५०६ सूत्र हैं। भामह-वृत्ति के अनुसार ४८७ और चन्द्रिकाटीका के अनुसार ५०६ सूत्र उपलब्ध हैं । प्राकृत-प्रकाश की चार प्राचीन टीकाएँ भी प्राप्य हैं
(१) मनोरमा-इस टीका के रचयिता भामह हैं। इसका काल सातवीं-आठवीं शताब्दी है। (२) प्राकृतमञ्जरी-इस टीका के रचयिता कात्यायन नाम के विद्वान् हैं। इनका काल
छठी-सातवीं शताब्दी है। (३) प्राकृतसंजीवनी—यह टीका वसन्तराज ने लिखी है। इसका काल १४-१५
शताब्दी है। (४) सुबोधिनी—यह टीका सदानन्द ने लिखी है। नवम परिच्छेद के नवम सूत्र की समाप्ति के साथ समाप्त हई है।
नारायण विद्याविनोद-कृत 'प्राकृतपाद' इत्यादि टीकायें हैं । कंसवहो तथा उसाणिरुद्ध के रचयिता मलावार निवासी रामपाणिवाद ने भी इस पर टीका लिखी है। इस टीका में गाथा सप्तसती, कर्पूरमंजरी, सेतुबन्ध और कंसवहो आदि से उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं।
प्राकृत-प्रकाश में बारह परिच्छेद हैं।
प्रथम परिच्छेद में स्वर-विकार और स्वर-परिवर्तन के नियमों का निरूपण किया गया है। विशिष्टविशिष्ट शब्दों में स्वर-सम्बन्धी जो विकार उत्पन्न होते हैं, उनका ४४ सूत्रों में विवेचन किया है।
दूसरे परिच्छेद में ४७ सूत्र हैं। इसका आरम्भ मध्यवर्ती व्यंजनों के लोप से होता है। मध्य में आने वाले क, ग, च, ज, त, द, प, य और व के लोप का विधान है। तीसरे सूत्र के विशेष-विशेष शब्दों के असंयुक्त व्यंजनों के लोप एवं उनके स्थान पर विशेष व्यंजनों के आदेश का नियमन किया गया है।
तीसरे परिच्छेद में ६६ सूत्र हैं। इसमें संयुक्त व्यंजनों के लोप, विकार एवं परिवर्तनों का निरूपण है। सभी सूत्र विशिष्ट-विशिष्ट शब्दों में संयुक्त व्यंजनों के परिवर्तन का निर्देश करते हैं।
चौथे परिच्छेद में ३३ सूत्र हैं। इसमें संकीर्ण विधि-निश्चित शब्दों के अनुशासन वणित हैं। इस परिच्छेद में अनकारी, विकारी और देशज इन तीनों प्रकार के शब्दों का अनुशासन आया है।
पाँचवें परिच्छेद में ४७ सूत्र हैं। इसमें लिंग और विभक्ति का आदेश वणित है।
छठे परिच्छेद में ६४ सूत्र हैं। इसमें सर्वनाम विधि का निरूपण है। यानी सर्वनाम शब्दों के रूप एवं उनके विभक्ति, प्रत्यय निदिष्ट किये गये हैं।
सातवें परिच्छेद में ३४ सूत्र हैं। इसमें तिङन्त विधि है। धातुरूपों का अनुशासन संक्षेप में लिखा गया है।
अष्टम परिच्छेद में ७१ सूत्र हैं। इसमें धात्वादेश है। संस्कृत की किस धातु के स्थान पर प्राकृत
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