________________
अनिर्वचनीय आनन्द का स्रोत : स्वानुभूति
-मुनिश्री अमरेन्द्रविजय जी
(अध्यात्मप्रधान अनेक पुस्तकों के लेखक तत्त्वचिन्तक तथा ओजस्वी प्रवचनकार)
•
अनुभव : जीवनमुक्ति का अरुणोदय
निज अनुभव लवलेश से, कठिन कर्म हो नाश ।
अल्पभव में भवि लहे, अविचलपुर का वास ।' उपर्युक्त कथन में यह बात प्रकट होती है कि स्व-स्वरूप का 'अनुभव' भव-भ्रमण की दीर्घ परम्परा को अत्यन्त लघु कर देता है। अनुभव में ऐसा क्या जादू है कि उसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति अल्पभव में ही मुक्ति प्राप्त कर ले ? इसका रहस्य यह है कि 'अनुभव' द्वारा एक पल में आत्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान मिलता है। निज की यह अनुभूति व्यक्ति की जीवनदृष्टि में एक जबर्दस्त क्रान्ति लाती है । श्रत-श्रवण, वाचन आदि के द्वारा प्राप्त हुआ बौद्धिक स्तर का ज्ञान ऐसी आमूलचूल क्रान्ति का सर्जन नहीं कर सकता। मोहनाश का अमोघ उपाय
श्रत द्वारा स्वरूप का बोध होने से एवं उससे चित्त भावित होने से, क्रमशः मोह की पकड़ ढीली होती जाती है, और विषय-कषाय के आवेग कुछ शिथिल हो जाते हैं । किन्तु विषयों का रस-विषयों में अनादि से रही सुख-भ्रान्ति-केवल श्रत से नहीं टलती, यह भ्रान्ति 'अनुभव' से मिटती है। अनुभव द्वारा निज के निरुपाधिक आनन्द का आस्वादन मिलने पर विषयेन्द्रियों के भोग वास्तव में ही नीरस
१. चिदानन्द जी महाराज, स्वरोदय ज्ञान, दोहा-५३ । २. उपाध्याय यशोविजय जी, अध्यात्मोपनिषद्, ज्ञानयोग, श्लोक-४ ।
( ३८ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org