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________________ उदयरत्न प्रभु इम भणे, मने भव पार उतारो ॥ एक बहुत बड़ा विशाल भव्य मकान है । भरापूरा परिवार है । पत्नी है, बच्चे हैं, संपत्ति है। इतने में उस मकान और संपत्ति के मालिक की मृत्यु हो जाती है । वह मुरदा होकर उस ऊंचे और भव्य मकान में पड़ा हुआ है। उस पर कफन डाला हुआ है, ऐसा लगता है मानो वह सफेद चादर ओढ़कर सो रहा हो । इतने में शहर के उसके निकट सम्बन्धी एकत्र होते हैं और कहते हैं कि इन्हें जल्दी निकालो भाई यहां से, मिट्टी की चीज जितनी जल्दी मिट्टी में मिल जाए, उतना ही अच्छा है। वे लोग उस घर के मालिक को इस तरह जल्दी निकाल ने की बात करते हैं जैसे यहां उसका जन्म ही न हुआ हो। जिस आदमी ने जीवन भर भाग-दौड़ कर एक-एक पैसा जोड़कर जिस मकान को बनवाया । रात-दिन मेहनत करके खाना-पीना हराम करके जिस संपत्ति को जोड़ा और बड़े कष्ट से जिस परिवार का पालन-पोषण किया, उस मकान और उस परिवार के बीच उसे एक क्षण भी अधिक रूकने नहीं दिया जाता। जब उसके जीवन का दीपक बुझ गया तो लोग कहने लगे- 'देरी क्यों कर रहे हो भाई, जल्दी निकालो इन्हें घर से ।' लोगों द्वारा कहा जाने वाला यह कथन विचारणीय है। जब शरीर रूपी सरोवर में से हंस रूपी जीवन निकलने लगता है, तब ये जो इन्द्रियां हैं कान, नाक, आंख, जीभ आदि सभी निरर्थक हो जाती हैं । इन इन्द्रियों को मंत्रीगण कहा जाता है। जैसा मंत्री कहता है वैसा ही राजा करता है । जैसा इन्द्रियों ने कहा, शरीर ने वैसा ही किया । कान ने कहां संगीत चाहिए, शरीर ने तुरंत संगीत दिया । नाक ने कहा सुगन्ध चाहिए और शरीर ने सुगन्ध दी । जीभ ने कहा मिष्ठान चाहिए, शरीर ने मिठाई दी । वे इन्द्रियाँ भी अन्त समय में काम नहीं आई। जिस शरीर के लिए अनेक प्रकार के आभूषण बनवाए थे । सोने और चांदी के गहनों से जिस शरीर को सजाते थे। जिस शरीर को सौंदर्य प्रसाधनों से संवारा जाता था । जिस शरीर को नये से नये लेटेस्ट से लेटेस्ट फैशन के कपड़े पहनाते थे । वह शरीर जब निर्जीव हो जाता है तो केवल एक सफेद कफन की खोज की जाती है । उस शरीर को ढकने के लिए लोग एक ही कपड़ा काफी समझते हैं। उस मुरदे को चार कंधों ने मिलकर उठाया । उसके आगे एक छोटी खाली हांडी उठा कर एक आदमी चलता है । यह खाली हांडी उसके कर्म की निशानी है। उस घर, परिवार और संपत्ति ३८ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210036
Book TitleAnitya Bhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndradinnasuriji
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size994 KB
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