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________________ स्वामी है उस आत्मा की साधना के लिए। शरीर की स्मृति में आत्मा की स्मृति खो जाती है। शरीर की सुन्दरता में आत्मा की सुन्दरता गायब हो जाती है। लोग शरीर को तो सजाते हैं, संवारते हैं, साबुन मलमल कर साफ रखते हैं, पर आत्मा को कुरूप छोड़ देते हैं। आत्मा के आधार पर शरीर टिका हुआ है । जिस दिन इस शरीर में से आत्मा निकल जाएगी, उसदिन शरीर निर्जीव और जड़ हो जाएगा। उस दिन शरीर का कोई मूल्य नहीं रहेगा। उस दिन उसे कोई सौंदर्य प्रसाधन बचा नहीं सकेगा। उस आत्मा की इतनी उपेक्षा क्यों। शरीर के माध्यम से आत्मा की साधना करनी चाहिए। शरीर की वह खूबसूरती किस काम की, जो आत्मा को बदसूरत बना दें। असली सौंदर्य अजर-अमर चेतन आत्मा का है न कि नश्वर-मृत शरीर का। गुजरात में उपाध्याय कवि उदयरत्नजी हुए हैं। उन्होंने वैराग्य के कई उत्तम पद गुजराती भाषा में लिखे हैं। उनका एक पद वैराग्य का हूबहू दृश्य उपस्थित करता है। आदमी जब मर जाता है तो क्या क्या होता है उसका वर्णन इस पद में किया गया है। ऊंचा मंदिर मांडियाँ सोड वाड़ी ने सुतो, काढो रे काढो एणे सहु कहे जाणे जन्म्योज न हतो। एक रे दिवस एवो आवसे, मने सघड़ो जी साले, मंत्री मड्या सर्वे कारमा, तेणुं पण कंइ नवी चाले ॥ साव सोना नारे सांकड़ां, पहेरण नवा नवा वाघां, । धोडु रे वस्तर एना कर्मनु, ते तो शोधवाज लाग्या ॥ चरू कढ़ाया अति घणा, बीजानुं नहीं लेखं । खोखरी हांडी एना कर्मनी, ते तो आगड़ देखें ॥ कोना छोरू ने कोना वासरू, कोना मां अने बापजी। अन्तकाले जीव ने जावू, एखलु साथे पुण्य ने पाप ॥ सगीरे नारी रे एनी कामिनी उभी टगमग जुवे । तेनुं पण कंइ नवी चाले, बेठी ध्रुस्के रुवे ॥ वाला ते बाला शुं करो? वाला वोडावी वड़शे, वाला ते वन केरां लाकड़ा, ते तो साथे ज बड़शे ॥ नहीं रे त्रापां रे नहीं तुंबड़ी नहीं तरवानो आरो। अनित्य भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210036
Book TitleAnitya Bhavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndradinnasuriji
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size994 KB
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