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प्रेरक व्यक्तित्व
गणधर गौतम ने महावीर से पूछा कि भगवन! आपकी पूजा अर्चना, उपासना करनेवाला व्यक्ति महान् है अथवा गरीबों, दीनों, अनाथों, असहायों, पीड़ितों एवं रोगियों की सहायता तथा सेवा शुश्रुषा करनेवाला व्यक्ति महान् है। प्रभु महावीर ने कहा कि 'जे गिल्लाणं पडिहरई से धन्ने' जो दीन दुखियों, अनाश्रितों, अपाहिजों, पीड़ितों की सहायता करता है। उसके अंधकार से परिपूर्ण जीवन को प्रकाश की किरणों से आलोकित करता है, उसका जीवन धन्य है एवं वह महान् है, पुण्यात्मा है।
भगवान महावीर के इस मार्ग का मृत्यु पर्यन्त अक्षरश: अनुकरण किया श्रीमती तारादेवी ने। वे सेवामूर्ति मदर टेरेसा की पर्याय थीं। महान् आचार्य रामचन्द्र सूरिश्वरजी म० इन्हें 'अनुपमा देवी' कहकर सम्बोधित करते थे।
श्रीमती तारादेवी ने अपने जीवनकाल में अनेक तीर्थों में जिनालयों का निर्माण करवाकर तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा करवाई जिनमें पालीताणा, मेहसाणा, हस्तगिरि, अहमदाबाद, कलिकुण्ड पार्श्वनाथ,
लिलुआ, बाली आदि प्रमुख हैं। इन सभी स्थानों पर श्रीमती अक्षय पुण्यात्मा : कांकरिया ने स्वयं भूमिपूजन किया एवं प्रतिष्ठा करवाई।
पालीताणा में उनकी ओर से स्थायी भोजनालय का संचालन
होता है जहाँ से साधु-साध्वी, श्रावक, श्राविका, वैरागी, वैरागिन शुद्ध जैन दर्शन में पुण्य के सम्बन्ध में कहा गया है कि जो कर्म आहार ग्रहण करते हैं। विगत चालीस वर्ष से यह भोजनालय चल आत्मा को शुभ की ओर ले जाए, पवित्र करे और सुख प्राप्ति का रहा है। सहायक हो, वही पुण्यात्मा कहलाता है। शुभ योग से पुण्य की
___पालिताणा में रोगी यात्रियों की सुविधा के लिए एक हॉस्पीटल प्राप्ति होती है। पुण्य बन्ध अत्यन्त कठिन है क्योंकि आत्मा की का निर्माण भी आपने करवाया। स्वधर्मी भक्ति, सेवा एवं गरीब अगणित वृतियाँ हैं अत: पुण्य-पाप के कारण भी अनेक हैं। छात्रों एवं छात्राओं की शिक्षा का खर्च वहन करने में भी वे सदैव
पुण्य कर्म का बन्ध नौ प्रकार से होता है एवं ४२ प्रकार से __ अग्रणी रही हैं। हंस पोकरिया में भोजनालय में भी आपने उसे भोगा जाता है। १-अन्न पुण्य, २-पान पुण्य, ३-लयन पुण्य,
उल्लेखनीय सहयोग किया है। मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में छरी पालित ४-शयन पुण्य, ५-वस्त्र पुण्य, ६-मन पुण्य, ७-वचन पुण्य, ८- संघ की यात्रा का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। छरी पालित संघ काय पुण्य, ९-नमस्कार पुण्य।
यात्रा में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका सभी पैदल यात्रा करते हैं पुण्य के इन नौ प्रकारों की कसौटी पर जब हम स्मृति शेष तारा गन्तव्य स्थान तक। इनका बहुत बड़ा महात्म्य माना जाता है। ऐसे देवी कांकरिया का मूल्यांकन करते हैं तो उनके समग्र जीवन को तीन छरी पालित संघ श्रीमती कांकरियाजी ने आयोजित कियेपुण्य कर्मों के एक ऐसे आलोकस्तम्भ के रूप में पाते हैं जो १. सन् १९६२ में राणकपुर से पालीताणा आनेवाले वर्षों में सतत प्रकाश विकीर्ण करता रहेगा एवं उसके २. सन् १९६९ में जामनगर से जूनागढ़ अनुकरण से पुण्य कर्म का बंध कर कोई भी जीव पुण्यात्मा बनकर ३. सन् १९७१ में पाटण से शंखेश्वर पार्श्वनाथ सिद्ध, बुद्ध, परमात्म-स्वरूप बन सकेगा।
इनका सम्पूर्ण व्यय भार श्रीमती कांकरियाजी ने वहन किया। श्रीमती तारादेवी कांकरिया का जन्म बीकानेर के सुप्रसिद्ध धर्म
श्रीमती कांकरिया अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह की साक्षात् परायण बैद परिवार में हुआ एवं गोगोलाव के कांकरिया परिवार के प्रतिमूर्ति थीं। विगत चालीस वर्षों से वे किसी पद-त्राण (चप्पल, श्री हरखचंद कांकरिया से इनका विवाह हआ। बचपन से ही धार्मिक जूता) आदि का प्रयोग नहीं करती थीं। वर्ष भर में चार साड़ी से संस्कारों में पले होने के कारण उनका सम्पूर्ण जीवन धर्ममय रहा। अधिक का वे व्यवहार नहीं करती थीं। साड़ियाँ भी सूती एवं
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
विद्वत खण्ड/१४१
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