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साधारण । ८ वर्ष की आयु से ही रात्रि भोजन का एवं कच्चे पानी का त्याग किया था। कम से कम पानी का व्यवहार वे स्नान के लिए करती थीं । जाति-पांति एवं भेदभाव से रहित उनका जीवन समता से परिपूर्ण था। श्रीमती कांकरिया का समग्र जीवन तपः पूत था । तपस्या उनके जीवन का एक प्रधान अंग थी। उन्होंने अनेक बार उपधान तप किया। वर्धमान तप बारह बार किया। नवपद ओली की तपस्या भी अनेक बार की वर्षीतप भी कई बार किये। उपवास, आयंबिल, बेला, तेला से लेकर ८ एवं दस की उन्होंने तपस्याएँ की उनका यह तपः पूत जीवन प्रणम्य और नमनीय है। अस्पतालों में जाकर रोगियों में फल वितरण, औषधि वितरण तो उनकी दैनिक जीवनचर्या थी। सड़क पर किसी भी रोगी एवं अपाहिज को देखकर अपना वाहन रुकवा देना उनका सहज स्वभाव था। उसे अपने वाहन में लेकर अस्पताल पहुंचाना एवं उसकी शुश्रूषा की सम्पूर्ण व्यवस्था कर ही वे वहाँ से हटती थीं।
गो के प्रति उनकी श्रद्धा अपरिमित थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में हजारों गायों को अभयदान दिलवाया। पालीताणा में उन्होंने गोशाला का निर्माण करवाया। वहाँ अशक्त, वृद्ध गायों को रखकर उनकी परिचर्या की जाती है।
इनका एक सम्बन्धी बड़ा बाजार के एक मकान में रहता था जहाँ शुद्ध वायु का प्रवेश नहीं था। सीढ़ियाँ पानी से भीगी हुई, अंधकार पूर्ण फिर भी वे पर्युषण एवं दिवाली पर्व पर वहाँ पहुँचकर उनकी खबर लेती थीं एवं उनके सुख-दुःख में सहभागी बनती थीं जबकि उनका कोई सम्बन्धी वहीं नहीं पहुँचता था। इसी सम्बन्धी के जब प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि का ऑपरेशन एक नर्सिंग होम में हुआ तब ये
विद्वत खण्ड / १४२
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लगातार डेढ़ माह तक जाकर उनकी सार संभाल करती थीं। उनकी उदारता, करुणा एवं सेवा भावना महनीय थी फलस्वरूप उनकी संपत्ति में भी अपार वृद्धि हुई। उनका जीवन इतना सरल, सीधा-सादा एवं सदाचार से युक्त था कि उन्होंने कभी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया। वे अभिनन्दनों एवं सम्मानों से सदा निर्लिप्त रहीं ।
अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह की इस देवी ने दिनांक २० जुलाई, १९९९ मंगलवार आषाढ वदी अष्टमी को ब्राह्म वेला ७.४५ पर इस असार संसार को छोड़कर महाप्रयाण किया। इस दिन भगवान नेमीनाथ का जन्म कल्याणक भी था । मृत्यु से पाँच पूर्व उन्हें अपनी मृत्यु का आभास हो गया था। ६ माह पूर्व ही उन्होंने अपने सभी गहने भी उतार कर गरीबों में वितरित कर दिये थे । चौविहार संधारा पूर्वक अपनी नश्वर देह को त्याग कर वे अमरत्व को प्राप्त कर गईं। अपने पीछे वे अपनी पति, पुत्र-पुत्रियों, पोतेपोतियों आदि का भरापूरा परिवार छोड़कर गईं। उनके पति श्री हरखचंद कांकरिया उनके प्रत्येक धर्म कार्य में दिल खोलकर सहयोग करते रहे हैं। उनके अप्रतिम सहयोग से ही वे सेवा का पर्याय बनीं उनकी स्मृति को हमारे अशेष प्रणाम वस्तुतः वे एक शलाका पुण्यात्मा थीं। आचार्य अमितगति का निम्न श्लोक उनका आदर्श था
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सत्वेषु मैत्री गुणीषु प्रमोदम् क्लेष्टेषु जीवेषु कृपा परत्वं, माध्यस्थ भावं विपरीत वृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देवा ।
शिक्षा-एक यशस्वी दशक
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