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________________ जीवननिर्वाह के लिये हिंसा की तरतमता का विचार जैन-दर्शन मूल लेखक - न्या. न्या. मुनि श्रीन्यायविजयजी अनुवादक - जैनदर्शनाचार्य, जैनागम-प्राचीनन्यायशास्त्री श्री. शान्तिलाल मणिलाल बी. ए. सितम्बर-१९५६ (४) जीवननिर्वाह के लिये हिंसा की तरतमता का विचार हिंसा के बिना जीवन अशक्य है इस बात का स्वीकार किए बिना कोई चारा नहीं है, परन्तु इसके साथ ही कम से कम हिंसा से अच्छे से अच्छा-श्रेष्ठ जीवन जीने का नियम मनुष्य को पालना चाहिए। परन्तु कम से कम हिंसा किसे कहना?-यह प्रश्न बहुतों को होता है। किसी सम्प्रदाय के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि 'बड़े और स्थूलकाय प्राणी का वध करने से बहुत से मनुष्यों का बहुत दिनों तक निर्वाह हो सकता है, जबकि वनस्पति में रहे हए असंख्य जीवों को मारने पर भी एक मनुष्य का एक दिन का भी निर्वाह नहीं होता। इसलिये बहुत से जीवों की हिंसा की अपेक्षा एक बड़े प्राणी को मारने में कम हिंसा है। ऐसे मन्तव्यवाले मनुष्य जीवों की संख्या के नाश पर से हिंसा की तरतमता का अंदाज लगाते हैं। परन्तु यह बात ठीक नहीं। जैनदृष्टि जीवों की संख्या पर से नहीं किन्तु हिंस्य जीव के चैतन्यविकास पर से हिंसा की तरतमता का प्रतिपादन करती है। अल्प विकासवाले अनेक जीवों की हिंसा की अपेक्षा अधिक विकासवाले एक जीव की हिंसा में अधिक दोष रहा हआ है ऐसा जैनधर्म का मन्तव्य है। इसीलिये वह वनस्पतिकाय को आहार के लिये योग्य मानता है, क्योंकि वनस्पति के जीव कम से कम इन्द्रियवाले अर्थात् एक ही इन्द्रियवाले माने जाते हैं और इनसे आगे के उत्तरोत्तर अधिक इन्द्रियवाले जीवों को आहार के लिये वह निषिद्ध बतलाता है। यही कारण है कि पानी में जलकाय के संख्यातीत जीव होने पर भी उनकी-इतने अधिक जीवों की विराधना [हिंसा] कर के भी-हिंसा होने पर भी एक प्यासे मनुष्य अथवा पशु को पानी पिलाने में अनुकम्पा है, दया है, पुण्य है, धर्म है-ऐसा सब कोई मानते हैं। इसका कारण यही है कि जलकाय के जीवों का समूह एक मनुष्य अथवा पशु की अपेक्षा बहत अल्प चैतन्यविकासवाला होता है। इस पर से ज्ञात होगा कि मनुष्यसृष्टि के बलिदान पर तिर्यंचसृष्टि के जीवों को बचाना जैन धर्म को मान्य नहीं है।
SR No.200027
Book TitleJivan Nirvah ke liye Himsaki Tartamta ka Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherNyayvijay
Publication Year1956
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle, Jaina_Education, & 0_Jaina_education
File Size180 KB
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