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________________ असली क्षमा वह है जिसमें द्वेषका नाम न हो। गृहस्थको वह कैसे होती है ? देखिये । कर्तव्य परायण गृहस्थ के लिए अपना कर्तव्य निभाते हुए द्वेष करनेकी आवश्यकता नहीं । अहिसावाले प्रकरण के अन्तर्गत विरोधी-हिंसा की बात आई है जो कि संयमी गृहस्य भी अवसर आनेपर कर गुजरता है, परन्तु ग़ौर करके देखनेवर वहां आपको द्वेष दिखाई नहीं देगा। शत्रुसे युद्ध द्वेषवश नहीं किया जाता, बल्कि आत्म-रक्षा या निज सम्मानकी रक्षा के लिए किया जाता है और इसलिए यदि कदाचित् शत्रुको जीत लिया जाय तो उसे तंग नहीं किया जाता बल्कि शान्तिपूर्वक समझा बुझाकर तथा कुछ उपयोगी शिक्षायें देकर तुरन्त छोड़ दिया जाता है। उसकी दृष्टि केवल आत्मरक्षाकी थी सो वह हो गई, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए था, इसलिए अवसर बीत जानेके पश्चात् वह व्यक्ति पहलेकी भांति ही दीखने लगता है। यदि पहले मित्र था तो अब भी मित्र दीखता है और यदि पहले सामान्य मनुष्य था अर्थात् न शत्रु या न मित्र तो अब भी वैसा ही दोखता है। यह है गृहस्थकी सच्ची क्षमा ।
SR No.151001
Book TitleForgiveness
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradeep Kumar
PublisherPradeep Kumar
Publication Year
Total Pages16
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationPresentation, Presentation, A000, & A010
File Size2 MB
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