________________
शिवेक-चूडामणि . स्वप्नेयशून्ये सृजति स्वशक्त्या
भोक्त्रादि विश्वं मन एव सर्वम् । . तथैव जाग्रत्यपि नो विशेष
स्तत्सर्वमेतन्मनसो विजृम्भणम् ॥१७२॥ जिसमें कोई पदार्थ नहीं होता उस स्वप्नमें मन ही अपनी शक्तिसे सम्पूर्ण भोक्ता-भोग्यादि प्रपञ्च रचता है, उसी प्रकार जागृतिमें भी और कोई विशेषता नहीं है, अतः यह सब मनका विलासमात्र ही है। सुषुप्तिकाले मनसि प्रलीने
नैवास्ति किश्चित्सकलप्रसिद्धः । अतो मनःकल्पित एव पुंसः
संसार एतस्य न वस्तुतोऽस्ति ॥१७३॥ सुषुप्ति-कालमें मनके लीन हो जानेपर कुछ भी नहीं रहतायह बात सबको विदित ही है । अतः इस पुरुष ( जीव ) का यह संसार मनकी कल्पनामात्र ही है, वस्तुतः नहीं।
वायुनानीयते मेघः पुनस्तेनैव नीयते । मनसा कल्प्यते बन्धो मोक्षस्तेनैव कल्प्यते ॥१७४॥
मेघ वायुके द्वारा आता है और फिर उसीके द्वारा चला जाता है, इसी प्रकार मनसे ही बन्धनकी कल्पना होती है और उसीसे मोक्षकी। देहादिसर्वविषये परिकल्प्य रागं
बध्नाति तेन पुरुष पशुवद्गुणेन ।
http://www.Apnihindi.com