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मनोमय कोश .. , वैरस्यमत्र षिवत्सु विधाय पश्चा
देनं विमोचयति तन्मन एव बन्धात् ॥१७५।। यह मन ही देह आदि सब विषयोंमें रागकी कल्पना करके उसके द्वारा रस्सीसे पशुकी भाँति पुरुषको बाँधता है और फिर इन विषवत् विषयोंमें विरसता उत्पन्न करके इसको बन्धनसे मुक्त कर देता है। तस्मान्मनः कारणमस्य जन्तो
बन्धस्य मोक्षस्य च वा विधाने । बन्धस्य हेतुर्मलिनं रजोगुणै
र्मोक्षस्य शुद्धं विरजस्तमस्कम् ॥१७६॥ इसलिये इस जीवके बन्धन और मोक्षके विधानमें मन ही कारण है, रजोगुणसे मलिन हुआ यह बन्धनका हेतु होता है तथा रज-तमसे रहित शुद्ध सात्त्विक होनेपर मोक्षका कारण होता है । विवेकवैराग्यगुणातिरेका
___च्छुद्धत्वमासाद्य मनो विमुक्त्यै । भवत्यतो बुद्धिमतो मुमुक्षो
स्ताभ्यां दृढाभ्यां भवितव्यमग्रे ॥१७७॥ - विवेक-वैराग्यादि गुणोंके उत्कर्षसे शुद्धताको प्राप्त हुआ मन मुक्तिका हेतु होता है, अत: पहले बुद्धिमान् मुमुक्षुके वे ( ज्ञानवैराग्य ) दोनों ही दृढ़ होने चाहिये ।
मनो नाम महाव्याघ्रो विषयारण्यभूमिषु । चरत्यत्र न गच्छन्तु साधवो ये मुमुक्षवः ॥१७॥
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