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________________ अभ्यास येनेवायं वपुरिदमसत्सत्यमित्यात्मबुद्धया पुष्यत्युक्षत्यवति विषयैस्तन्तुभिः कोशकृद्वत् ॥१३९॥ पुरुषका अनात्मवस्तुओंमें 'अहम्' इस आत्मबुद्धिका होना ही जन्म-मरणरूपी क्लेशोंकी प्राप्ति करानेवाला अज्ञानसे प्राप्त हुआ बन्धन है; जिसके कारण यह जीव इस असत् शरीरको सत्य समझकर इसमें आत्मबुद्धि हो जानेसे तन्तुओंसे रेशमके कीड़ेके समान, इसका विषयोंद्वारा पोषण, मार्जन और रक्षण करता रहता है। अतस्मिंस्तबुद्धिः प्रभवति विमूढस्य तमसा विवेकाभावाद्वै स्फुरति भुजगे रज्जुधिषणा । ततोऽनर्थबातो निपतति समादातुरधिकस्ततो योऽसद्ग्राहः स हि भवति बन्धः शृणु सखे ॥१४०॥ मूढ़ पुरुषको तमोगुणके कारण ही अन्यमें अन्य-बुद्धि होती है। विवेक न होनेसे ही रज्जुमें सर्प-बुद्धि होती है, ऐसी बुद्धिवालेको ही नाना प्रकारके अनर्थोका समूह आ घेरता है; अतः हे मित्र ! सुन, यह जो असद्ग्राह ( असत्को सत्य मानना ) है वही बन्धन है। अखण्डनित्याद्वयबोधशक्त्या - स्फुरन्तमात्मानमनन्तवैभवम् । समावृणोत्यावृतिशक्तिरेषा - तमोमयी राहुरिवार्कविम्बम् ॥१४१॥ अखण्ड, नित्य और अद्वय बोध-शक्तिसे स्फुरित होते हुए अखण्डेश्वर्यसम्पन्न आत्मतत्त्वको यह तमोमयी आवरणशक्ति इस प्रकार टैंक लेती है जैसे सूर्यमण्डलको राहु । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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