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________________ विवेक-चूडामणि वह न जन्मता है, न मरता है, न बढ़ता है, न घटता है और न विकारको प्राप्त होता है । वह नित्य है और इस शरीर के लीन होनेपर भी घटके टूटनेपर घटाकाशके समान लीन नहीं होता । प्रकृतिविकृतिभिन्नः सदसदिदमशेषं विलसति परमात्मा जाग्रदादिष्ववस्था शुद्धबोधस्वभावः भासयनिर्विशेषः । स्वहमहमिति साक्षात साक्षिरूपेण बुद्धेः ॥ १३७॥ प्रकृति और उसके विकारोंसे भिन्न, शुद्ध ज्ञानस्वरूप, वह निर्विशेष परमात्मा सत्-असत् सबको प्रकाशित करता हुआ जाग्रत् आदि अवस्थाओं में अहंभाव से स्फुरित होता हुआ बुद्धिके साक्षीरूपसे साक्षात् विराजमान है indi. com नियमितमनसा त्वं स्वमात्मानमात्मन्ययमहमिति साक्षाद्विद्धि बुद्धिप्रसादात् । जनिमरणतरङ्गापार संसारसिन्धुं प्रतर भव कृतार्थो ब्रह्मरूपेण संस्थः ॥ १३८॥ तू इस आत्माको संयतचित्त होकर बुद्धिके प्रसन्न होने पर "यह मैं हूँ' - ऐसा अपने अन्तःकरणमें साक्षात् अनुभव कर । और [ इस प्रकार ] जन्म-मरणरूपी तरङ्गोंवाले इस अपार संसारसागरको पार कर तथा ब्रह्मरूपसे स्थित होकर कृतार्थ हो जा । अध्यास अत्रानात्मन्यहमिति मतिर्बन्ध एषोऽस्य पुंसः प्राप्तोऽज्ञामाज्जननमरणक्लेशसम्पातहेतुः | http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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