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माया- निरूपण
प्रेमकी आत्मार्थता आत्मार्थत्वेन हि प्रेयान् विषयो न स्वतः प्रियः । स्वत एव हि सर्वेषामात्मा प्रियतमो यतः ॥ १०८ ॥ विषय स्वतः प्रिय नहीं होते, किन्तु आत्मा के लिये ही प्रिय होते हैं, क्योंकि स्वतः प्रियतम तो सबको आत्मा ही है ।
तत आत्मा सदानन्दो नास्य दुःखं कदाचन । यत्सुषुप्तौ निर्विषय आत्मानन्दोऽनुभूयते । श्रुतिः प्रत्यक्षमैतिह्यमनुमानं च जाग्रति ॥ १०९ ॥ इसलिये आत्मा सदा आनन्दस्वरूप है, इसमें दुःख कभी नहीं है । तभी सुषुप्ति में विषयोंका अभाव रहते हुए भी आत्मानन्दका अनुभव होता है । इस विषय में श्रुति, प्रत्यक्ष, ऐतिह्य ( इतिहास ) और अनुमान प्रमाण जाग्रत् ( मौजूद ) हैं ।
माया- निरूपण परमेशशक्तिरनाद्यविद्या त्रिगुणात्मिका परा । सुधियैव माया
अव्यक्तनाम्नी
कार्यानुमेया
यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते ॥ ११० ॥
जो अव्यक्त नामवाली त्रिगुणात्मिका अनादि अविद्या परमेश्वर की
परा शक्ति है, वही माया है; जिससे यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है । बुद्धिमान् जन इसके कार्यसे ही इसका अनुमान करते हैं ।
सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका
नो मित्राप्यभिन्नाप्युभयात्मिका नो ।
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