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________________ ३७ माया- निरूपण प्रेमकी आत्मार्थता आत्मार्थत्वेन हि प्रेयान् विषयो न स्वतः प्रियः । स्वत एव हि सर्वेषामात्मा प्रियतमो यतः ॥ १०८ ॥ विषय स्वतः प्रिय नहीं होते, किन्तु आत्मा के लिये ही प्रिय होते हैं, क्योंकि स्वतः प्रियतम तो सबको आत्मा ही है । तत आत्मा सदानन्दो नास्य दुःखं कदाचन । यत्सुषुप्तौ निर्विषय आत्मानन्दोऽनुभूयते । श्रुतिः प्रत्यक्षमैतिह्यमनुमानं च जाग्रति ॥ १०९ ॥ इसलिये आत्मा सदा आनन्दस्वरूप है, इसमें दुःख कभी नहीं है । तभी सुषुप्ति में विषयोंका अभाव रहते हुए भी आत्मानन्दका अनुभव होता है । इस विषय में श्रुति, प्रत्यक्ष, ऐतिह्य ( इतिहास ) और अनुमान प्रमाण जाग्रत् ( मौजूद ) हैं । माया- निरूपण परमेशशक्तिरनाद्यविद्या त्रिगुणात्मिका परा । सुधियैव माया अव्यक्तनाम्नी कार्यानुमेया यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते ॥ ११० ॥ जो अव्यक्त नामवाली त्रिगुणात्मिका अनादि अविद्या परमेश्वर की परा शक्ति है, वही माया है; जिससे यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है । बुद्धिमान् जन इसके कार्यसे ही इसका अनुमान करते हैं । सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका नो मित्राप्यभिन्नाप्युभयात्मिका नो । http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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