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________________ विवेक-चूडामणि साङ्गाप्यनङ्गाप्युभयात्मिका नो ___महाद्भुतानिर्वचनीयरूपा ॥१११॥ वह न सत् है, न असत् है और न [ सदसत् ] उभयरूप है। न भिन्न है; न अभिन्न है और न [भिन्नाभिन्न ] उभयरूप है। न अङ्गसहित है, न अङ्गरहित है और न [ साङ्गानङ्ग ] उभयात्मिका ही है; किन्तु अत्यन्त अद्भुत और अनिर्वचनीयरूपा (जो कही न जा सके ऐसी ) प्रसिद्ध है । शुद्धाद्वयब्रह्मविबोधनाश्या सर्पभ्रमो रज्जुविवेकतो यथा । रजस्तमः सत्त्वमिति प्रसिद्धा ww गुणास्तदीयाः प्रथितैः स्वकार्यैः ॥११२॥ रज्जुके ज्ञानसे सर्प-भ्रमके समान वह अद्वितीय शुद्ध ब्रह्मके ज्ञानसे ही नष्ट होनेवाली है। अपने-अपने प्रसिद्ध कार्योंके कारण सत्त्व, रज और तम-ये उसके तीन गुण प्रसिद्ध हैं । - रजोगुण विक्षेपशक्ती रजसः क्रियात्मिका . ___ यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी । रागादयोऽस्याः प्रभवन्ति नित्यं दुःखादयो ये मनसो विकाराः ॥११३॥ क्रियारूपा विक्षेपशक्ति रजोगुणकी है जिससे सनातनकालसे समस्त क्रियाएँ होती आयी हैं और जिससे रागादि और दुःखादि, जो मनके विकार हैं, सदा उत्पन्न होते हैं । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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