________________
विवेक-चूडामणि प्राणादिकर्माणि वदन्ति तज्ज्ञाः
प्राणस्य धर्मावशनापिपासे ॥१०४॥ श्वास-प्रश्वास, जमुहाई, छींक, काँपना और उछलना आदि क्रियाओंको तत्त्वज्ञ प्राणादिका धर्म बतलाते हैं तथा क्षुधा-पिपासा भी प्राणहीके धर्म हैं।
अहंकार अन्तःकरणमेतेषु चक्षुरादिषु वर्मणि ।
अहमित्यभिमानेन तिष्ठत्याभासतेजसा ॥१०५॥ - शरीरके अंदर इन चक्षु आदि इन्द्रियों (इन्द्रियके गोलकों) में चिदाभासके तेजसे व्याप्त हुआ अन्तःकरण मैंपन' का अभिमान करता हुआ स्थिर रहता है।
अहङ्कारः स विज्ञेयः कर्ता भोक्ताभिमान्ययम् । सत्त्वादिगुणयोगेन चावस्थात्रयमश्नुते ॥१०६॥
इसीको अहङ्कार जानना चाहिये । यही कर्ता, भोक्ता तथा मैंपनका अभिमान करनेवाला है और यही सत्त्व आदि गुणोंके योगसे तीनों अवस्थाओंको प्राप्त होता है।
विषयाणामानुकूल्ये सुखी दुःखी विपर्यये । सुखं दुःखं च तद्धर्मः सदानन्दस्य नात्मनः ॥१०७॥
विषयोंकी अनुकूलतासे यह सुखी और प्रतिकूलतासे दुखी होता है । सुख और दुःख इस अहङ्कारके ही धर्म हैं, नित्यानन्दखरूप आत्माके नहीं।
http://www.Apnihindi.com