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बताया कि रोग की जड़ मेदा है । हमें मानना पड़ेगा कि लूईकने का सिद्धान्त बिलकुल ठीक है । मि० ट्रिटन जो डरवन के मजिटूट थे धनवत से बिल्कुल अपंग हो गये थे । उन्होंने अनेक औषधियों का सेवन किया किन्तु उससे कोई लाभ नहीं हुआ । अन्त में लूईकूने के इलाज से वे अच्छे हो गये । वह अधिक समय तक डरवन में सुख से रहे और सदा लोगों को लूईकने के लाज द्वारा लाभ उठाने की राय देते रहे। लूईकूने की पद्धति द्वारा इलाज करने वाली संस्था नैटाल में स्वीटवाटर्स नामक स्टेशन के समीप अब भी है ।
डाक्टर लूईकूने लिखते हैं कि मेदा की गर्मी पानी से मिटती है। इसके लिये उसने ठंडे पानी से स्नान करना बतलाया है ताकि नेदे के आस-पास के भाग ठंडे रह सकें । आसानी से स्नान करने के लिये उसने एक प्रकार का टीन का टब बनाया है लेकिन इसके बिना भी हमारा काम चल सकता है। पुरुष या स्त्री के कद के अनुसार, ३६ इंच या उससे छोटा-बड़ा टीन का टब कुछ लम्बाई लिये गोल आकार का बाजार में बिकता है टब का चौथाई हिस्सा ठंडे पानी से भर कर उसमें रोगी को इस ढंग से बिठाना चाहिए कि उसका पैर और घड़ पानी से बाहर रहे । नाभी से लेकर जाँघ तक का हिस्सा पानी के भीतर रहे। सबसे अच्छा तरीका यह है के पैर किसी लकड़ी के तख्ते पर रख दिए जायँ । रोगी को टब में नंगा बिठाना चाहिये । ठण्डक महसूस होने पर पर और धड़ कम्बल से ढक दिये जायें । ऐसी हालत में रोगी को कुर्ता इत्यादि भो पहनाया जा सकता है । लेकिन ये सब चीजें पानी के बाहर रहनी चाहिये । स्नान की जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ धूप और हवा अच्छी तरह पहुँच सके। रोगी को पानी के भीतर अपना पेट किसी खुरखुरे कपड़े से मलना चाहिये । यदि रोगी स्वयं ऐसा न कर सके तो उसे किसी दूसरे से मलवाना चाहिये ।
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