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( ६ ) safare at बात है । रोग केवल हमारे कर्मों का ही फल नहीं विचारों का भी फल है। एक डाक्टर का कहना है कि मनुष कालरा और प्लेग की अपेक्षा उनके भय से अधिक मरते हैं । कुल सत्य है कि डरपोक मनुष्य अपनी मृत्यु के पहिले कई बार
अज्ञानता ही प्रायः रोगों का कारण हुआ करती है । बहुध रण रोगों में भी उसका उपचार न जानने के कारण हम घबड़ा और उससे छुटकारा पाने के लिये उल्टा सुल्टा उपचार कर भ उपस्थित कर देते हैं । स्वास्थ्य के साधारण नियमों को न कारण हम गलत औषधि का प्रयोग करते हैं या किसी अनाड़ी शरण लेते हैं । कितने आश्चर्य को बात है कि हम अपने पास क की जानकारी दूर की वस्तुओं की अपेक्षा बहुत कम रखते हैं, ह अपने गाँव या मुहल्ले के विषय में कुछ नहीं जानते, लेकिन इ पहाड़ और नदियों के बारे में भली-भाँति बतला सकते हैं । ह मान के तारों के विषय में जानकारी प्राप्त करने का तो उद्योग लेकिन अपने घर की चीजों के बारे में नहीं । हम प्रकृति के नाटक की ओर तो ध्यान नहीं देते, लेकिन मनुष्यकृत नाट्यश देखने के लिये बेचैन रहते हैं । हम अपने शरीर की रचना - डियाँ कैसे बढ़ती हैं, खून का दौरा कैसे होता है, एवं किस ग्रक हो जाता है, किस प्रकार बुरी भावनाओं में पड़कर हमारी इन्द्रि जित होती हैं, किस प्रकार हमारे मस्तिष्क को आराम मिलता विषयों की अनभिज्ञता पर लज्जित नहीं होते । शरीर से बढ़कर घनिष्ठता रखने वाली कोई दूसरी उससे जितना हम अनभिज्ञ हैं
वस्तु नहीं है । परन्तु श्राश्व उतना और किसी चीज से नहीं