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हुई दूषित हवा पुनः उनके साँस से अन्दर प्रवेश करती है । यह बुरी आदत है और स्वाँस के सिद्धान्त के विरुद्ध है ।
यदि हमें जुकाम हुआ हो, तो हम सर को ढँक सकते हैं लेकिन नाक को सदैव खुला ही रखना चाहिए। हवा और रोशनी में घनिष्ट सम्बन्ध है । दोनों की समान आवश्यकता हैं । इसी कारण अंधेरे स्थान को नरक कहते हैं। जहाँ रोशनी नहीं जातो वहाँ की वायु स्वच्छ नहीं रह सकती । यदि हम लोग किसी बन्द स्थान में प्रवेश करें, तो शीघ्र ही दूषित वायु का अनुभव करने लगेंगे। हम लोग अन्धेरे में नहीं देख सकते। इससे प्रकृति को यह इच्छा है कि हम लोग रोशनी में रहें! अन्धियारी की हमें जितनी आवश्यकता हैं, प्रकृति स्वयं हमें रात में दे देती है । फिर भी बहुत लोग जमीन के नीचे बने कमरों में जहाँ रोशनी और हवा उचित मात्रा में नहीं पहुँच पाती, गर्मियों में रहने के आदि हैं। ऐसे लोग हवा और रोशनी से वंचित होकर सर्वदा कमजोर बने रहते हैं ।
आज-कल यूरप में बहुतेरे डाक्टर ऐसे हैं जो रोगियों के वायु और धूप के प्रयोग से चिकित्सा करते हैं। लाखों आदमी हवा और सूर्य की किरणों द्वारा आराम किये जाते हैं । इसलिये हमें अपने कमरे के दरवाजां और खिड़कियों को खुला रखना चाहिए, ताकि स्वच्छ हवा उसमें प्रवेश करती रहे । पाठकगण यह प्रश्न कर सकते हैं कि जो लोग खान के अन्दर काम करते हैं, उनके ऊपर क्यों नहीं असर पड़ता ?
जो मनुष्य इस विषय को अच्छी तरह जान गया है वह ऐसा प्रश्न कदापि नहीं करेगा । हमें अच्छा से अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करना चाहिए और जैसे-तैसे स्वास्थ्य पर संतोष नहीं करना चाहिए। यह मानी हुई बात है कि कम हवा और कम रोशनी मनुष्य को रोगी बना देते हैं। शहर के रहने वाले देहात के
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