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छोड़नी चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें अधिक परिश्रम की आवश्यकता नहीं है। केवल थोड़ी सी सावधानी से यह काम हो सकता है।
अब इस बात को हम लोग समझ गये कि स्वयं हम लोगों की कुछ यादतें हवा को दूषित कर देती हैं अब हमको स्वच्छ रखने के लिये हमें क्या सावधानी करनी चाहिये । हम पीछे लिख चुके हैं कि साँस नाक द्वारा लेना चाहिए, मुँह से नहीं। उचित रोति से साँस लेना बहुत कम लोग जानते हैं। बहुतेरे मुंह द्वारा साँल लेते हैं जो बहुत हानिकारक है । साँस लेने से यदि बहुत ठंडी हवा अन्दर प्रवेश करती है तो इमें ठंड लग जाती है और अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त मुंह से साँस लेने से हवा में मिले मिट्टी के कण फेफड़ों में पहुँच कर बहुत हानि पहुँचाते हैं। जैसे कि नवम्बर के दिनों में लंडन में जो धुना बड़ी-बड़ी चिमनियों से निकलता है वह कुहरे में मिलकर एक पीला पदार्थ पैदा करता है। इसमें कालिख मिला रहता है जो वहाँ के मुंह से साँस लेने वाले ग्राइमियों के थूक में देखा जाता है। जो स्त्रियाँ नाक से साँस नहीं लेता इससे बचने के लिये मुंह पर नकाब डाले रहती हैं जो उनकी रक्षा करता है। यदि इन नकाब को सावधानी से देखा जाय तो उन पर छोटे-छोटे कोयले के कण लगे हुए मिलेंगे। हमारे नाक के अन्दर ऐसे ईश्वरीय पर्दे हैं जो उन्हें फेफड़ों तक जाने से रोक दते हैं । अतः हमें सर्वदा नाक ही से साँस लेना चाहिए। यह कोई कठिन कार्य नहीं है। अगर हम लोग अपने मुँह का सिवाय बातचीत करते वक्त छोड़ सर्वदा बन्द रखें। जिनको प्राइत मुँह खोलकर सोने की है उन्हें अपने मुँह पर पट्टी लगाकर सोना चाहिए ताकि उन्हें नाक से साँस लेना पड़े। उन्हें सुबह शाम खुली हवा में बीस-बीस लम्बी साँस लेना चाहिए। स दमी