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________________ भारत की खोज दगी उतनी होती है। तो फिर मैंने दरवाजे खोलने शुरू किए। फिर धीरे-धीरे मुझे ख याल आया क्यों ना खुले आकाश के नीचे क्यों ना चला जाऊं जहां जीवन पूरा होगा, टोटल होगा। इसलिए मैं महल को छोड़कर खुले आकाश के नीचे आ गया ।' मैं आपसे कहता हूं अगर मरना हो तो सुरक्षा पूरी कर लें, और अगर जीवित रहना हो, तो असुरक्षा, असुरक्षा के वरन् और स्वागत की हिम्मत और साहस होना चाहि ए। यह भारत की जो परंपरावादिता है यह जो पुराने को पकड़ लेने का आग्रह है य ह नए का भय है, नए का भय जीवन का भय है, और मैं आपसे कहना चाहता हूं क भारत की प्रतिभा सोसाइडल है, आत्मघाती है। हम मरने में ज्यादा उत्सुक हैं जी ने में कम। इसलिए हम मोक्ष की ज्यादा बातें करते हैं जीवन की कम। हम इस बा त में ज्यादा आतुर हैं कि मरने के बाद क्या है, मरने के पहले क्या है हमारी इसमें कोई उत्सुकता नहीं है। हम स्वर्ग और नरक के लिए ज्यादा चिंतित हैं। हम यह पृथ्वी स्वर्ग बने या नरक व ने इसके लिए बिलकुल चिंतित नहीं हैं। हम अभी और यहां, हमारा कोई रस नहीं है। हमारा रस सदा वहां है मृत्यु के बाद, मृत्यु के बाद। मुझे लोग रोज मिलते हैं। जो पूछते हैं कि मरने के बाद क्या होगा । मैं उस आदमी की तलाश में हूं जो पूछे की मरने के पहले क्या हो ? वह नहीं कोई पूछता कि मरने के पहले क्या हो, लोग पूछते हैं कि मरने के बाद क्या हो ? ऐसा प्रतित होता है कि हम मृत्यु की छाया में जी रहे हैं। और हमारी प्रतिभा ने मृत्यु की छाया को बहुत बड़ा करके बता दिया है और इतना बड़ा करके बता दिया है कि धीरे-धीरे हम यह भूल ही गए है कि जी ना है। हम सिर्फ इसी फिक्र में लगे हैं कि मृत्यु से किस तरह बच जाएं या मृत्यु से कि तर ह पार हो जाएं। हम भयभीत हैं । और भय से भरे हुए लोग कभी भी जीवंत नहीं ह ो सकते। परंपरावाद से मुक्त होना हो तो सुरक्षा के अतिमोह से मुक्त होना जरूरी है। और मजे की बात यह है कि जीवन में सुरक्षा हो ही नहीं सकती । सब सुरक्षा भ्र म है। मैं कितना ही बड़ा मकान बनाऊं, और कितनी ही लोहे की दीवारें बनाऊ, अ और कितनी ही संघीनें पहरे पर रख दूं तो भी मैं मरूंगा । मरने से, बीमार होने से, क्या सुरक्षा है? मैं कितने ही विवाह के कानून बनाऊं, कितनी ही अदालतें बिठाऊं । जरूरी नहीं है कि जो पत्नी मुझे आज प्रेम करती है, व ह कल भी मुझे प्रेम करे। मैं कितना ही दोहराऊं कि प्रेम सास्वत है, लेकिन जगत में कुछ भी सास्वत नहीं है। ना प्रेम ना कुछ और, इस जगत में सभी कुछ बदलता हुआ है इसलिए कितने ही कानून बिठाओ कितनी ही अदालतें बनाओ, कितने ही नि यम बनाओ, कोई सुरक्षा नहीं है कि जिसने मुझे आज प्रेम दिया वह कल भी मुझे म देगा। कल असुरक्षित है। एक खतरा और है, अगर मैंने सुरक्षा का बहुत इंतजाम किया तो शायद कानून की व्यवस्था इतनी सक्त हो जाए, कि वह आज मुझे प्रेम दे सकता था वह भी ना ए। इतना मुक्त ना रह जाए कि प्रेम आज भी दे सके। ना प्रेम का कोई भरोसा है Page 55 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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