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ओशो
नए भारत की खोज
टाक गिवन इन पूना, इंडिया डिस्कोर्स नं० १
भारत की खोज
मेरे प्रिय आत्मन्,
एक अंधेरी रात में, आकाश तारों से भरा था और एक ज्योतिषि आकाश की तरफ आंखें उठाकर तारों का अध्ययन कर रहा था। वह रास्ते पर चल भी रहा था औ र तारों का अध्ययन भी कर रहा था। रास्ता कब बदल गया उसे पता नहीं क्योंकि जिसकी आंख आकाश पर लगी हों उसे जमीन के रास्तों पर भटक जाने का पता न हीं चलता ।
पैर तो जमीन पर चलते हैं और अगर आंखें आकाश को देखती हैं तो पैर कहां चले जाएंगे इसे पहले से निश्चित नहीं कहा जा सकता। वह रास्ते से भटक गया और र ास्ते के किनारे एक कुएं में गिर पड़ा। जब कुएं में गिरा तब उसे पता चला। आंखें तारे देखती रहीं और पैर कुएं में चले गए। वह बहुत चिल्लाया अंधेरी रात थी गांव दूर था पास के एक खेत से एक बूढ़ी औरत ने आकर वामुशकल से उसे कुएं के व हर निकाला।
उस ज्योतिषि ने उस बुढ़िया के पैर छुए और कहा 'मां! तूने मेरा जीवन बचाया है शायद तुझे पता नहीं मैं कौन हूं? मैं एक बहुत बड़ा ज्योतिषि हूं और अगर तुझे आ काश के तारों के संबंध कुछ भी समझना हो तो तू मेरे पास आ जाना। सारी दु नया से बड़े-बड़े ज्योतिषि मेरे पास सीखने आते हैं। उनसे बहुत रुपया मैं फीस में ले ता हूं, तुझे मैं मुफ्त में बता सकूंगा । उस बूढ़ी औरत ने कहा, बेटे मैं कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगी। क्योंकि जिसे अभी जमीन के गड्ढे नहीं दिखाई पड़ते उसे आकाश के तारों के ज्ञान का कोई भरोसा नहीं।
भारत की समस्याएं तो पृथ्वी की हैं और भारत की आंखें सदा से आकाश पर लगी रही हैं। भारत तारों का अध्ययन कर रहा है और जमीन पर उसके सारे रास्ते भट क गए हैं और उस ज्योतिषि को तो पता भी चल गया कि कुएं में गिर पड़ा। भारत को अभी भी पता नहीं चल सका है कि हम हजारों साल से कुएं में ही पड़े हैं। कन आंखें तो कुएं में से भी आकाश को देखती रह सकती हैं। आंखें आकाश के ता रों की ही बात सोचती रहती हैं और जीवन हमारा कुएं में पड़ गया है। बल्कि कुआं
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