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________________ भारत का भविष्य कम्युनिस्ट पार्टी जो संदेश लेकर यहां आई वह संदेश केवल समाजवाद का संदेश न होकर साथ ही नास्तिकता और अधर्म का संदेश भी बन गया। उसके दुष्परिणाम हुए भारत में। भारत के मानस में नास्तिकता के लिए कोई जगह नहीं है। आज भी नहीं है भारत के मानस में। थोड़े से शिक्षित, पढ़े-लिखे लोगों के मन में हो सकती है। भारत के मानस में कोई जगह नहीं है। तो कम्युनिस्ट पार्टी भारत के मानस के बीच एक बुनियादी बैरियर की तरह है। उससे नास्तिकता और धर्म-विरोधी भाव खड़ा हुआ है। दूसरे सोशलिस्ट जो हिंदुस्तान के थे, वे सोशलिस्ट कम थे और बुनियादी रूप से गांधीवादी ज्यादा थे। गांधीवाद को उन्होंने सोशलिज्म की शक्ल में गढ़ा हआ था। और गांधीवादी बुनियादी रूप से, गांधीवाद बुनियादी रूप से समाजवाद नहीं है। (प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।) नहीं, वह नहीं कह रहा हूं। वह नहीं है। और, तो जो दूसरा सोशलिस्ट दिमाग पैदा हुआ मुल्क में, जयप्रकाश या उस तरह के लोगों का, वे मूलतः गांधीवादी हैं। सोशलिज्म की तरफ उसके झुकाव थे। उसने थोड़ी-बहुत कोशिश की, वह असफल हो गया, वह असफल होने को था। वह धीरे-धीरे इधर-उधर भाग गया। या तो कुछ सर्वोदय में जाकर लग गया और उसमें डूब गया अपने को भुलाने के लिए, या किसी और काम में लग गया। हिंदुस्तान में पिछले तीस-चालीस साल के भीतर कोई व्यवस्थित रूप से समाजवाद एज ए थॉट म्यूजियम खड़ा नहीं हो सका। पार्टी पैदा होती है वैचारिक क्रांति से। पार्टीज तो खड़ी हो गइ| हिंदुस्तान में लेकिन वैचारिक क्रांति बिलकुल नहीं हुई। पार्टीज आउट...एक वैचारिक मूवमेंट की। हिंदुस्तान में एक समाजवाद, एक लोकमानस को छूने वाला आंदोलन नहीं बन सका। पार्टीज खड़ी हो गइ।। और पार्टीज कई तरह से खड़ी हो गइ। ये जो पार्टीज खड़ी हुइ। इनका अब भी लोकमानस से कोई संबंध, सीधा साक्षात्कार नहीं हो सका है। तो मेरी जो दृष्टि है, मझे पार्टी की फिक्र नहीं है, जितनी समाजवादी लोकभावना की फिक्र है। समाजवाद एक वैचारिक तल पर देश के भाव में पैदा हो जाए, तो पार्टीज उससे पैदा हो सकती हैं। एडजेस्टिंग पार्टीज भी उसके अनुकूल बन सकती हैं, वह दूसरी बात है। उसकी मुझे चिंता नहीं। इसलिए आप जो कहते हैं कि यह उटोपिया मालूम होता है। यह ठीक भी है एक अर्थों में, क्योंकि विचार की कोई भी क्रांति उटोपिया ही है। लेकिन विचार की क्रांति से धीरे-धीरे सक्रिय मूवमेंट पैदा होते हैं और वे उटोपिया नहीं रह जाते हैं। (प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।) हां, समझा न, समझा, मैं समझ गया। मैं अभी आपसे बात कर रहा था, आप नहीं आए उसके पहले यह बात हो चुकी। मैं यह कह रहा था कि वह जो आग लगी है, वह आपको जो आग दिखाई पड़ती है, इमिजिएट Page 94 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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