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________________ भारत का भविष्य प्रॉब्लमस की, उसको आग नहीं कह रहा हूं। हम, हमारी आग लगी है बहुत सनातन, और वह जो आग लगी है वह इमिजिएट प्रॉब्लमस की नहीं, इमिजिएट प्रॉब्लमस उस सनातन आग के परिणाम हैं, बाइ-प्रोडक्ट हैं। सनातन आग तो गरीबी है। न-न । गरीबी मैं नहीं कह रहा हूं। गरीबी भी हमारी चिंतना का परिणाम है। गरीबी भी बेसिक कारण नहीं है। हम जिस तरह सोचते रहे हैं आज तक उसमें गरीबी ही पैदा हो सकती है। वह हमारे सोचने के गलत रास्तों का परिणाम है। गरीबी भी! हम गरीब अकारण नहीं हैं। और गरीब होना कोई प्राकृतिक घटना नहीं है हमारे ऊपर । और गरीबी भी हमारे सोचने के गलत ढंगों का परिणाम है। और जब तक वे सोचने के गलत ढंग नहीं बदले जाते हैं, तब तक आप गरीबी को थोड़ी-बहुत सहने योग्य बना सकते हैं, और आप इससे ज्यादा कुछ भी नहीं कर सकते। और वह भी आप नहीं कर पाएंगे। जैसा मेरा कहना है, जैसा मेरा करना है कि हमको आज तीस साल से पता है यह बात कि अगर हमारी जनसंख्या बढ़ती चली जाती है तो हम रोज गरीब से गरीब होते चले जाएंगे। यह तीस साल से हमें पता है। लेकिन हमारी जनसंख्या बढ़ती ही चली गई है। और आज भी जो हम उपाय कर रहे हैं वे उपाय ऐसे हैं जैसे पूरे समुद्र को कोई थोड़ी-बहुत रंग की टिकिया डाल कर वह रंगने की कोशिश कर रहा है। इतने ही उपाय से अगर हमने संख्या को रोकने की कोशिश की, तो हम दो सौ साल में भी संख्या नहीं रोक सकते हैं! और जितने हम उपाय कर रहे हैं, वे उतने उपाय इतने कम हैं और संख्या इतनी तीव्रता से बढ़ रही है, यह हमारी समझ के बाहर हुआ जा रहा है। लेकिन संख्या बढ़ रही है इसलिए नहीं कि संख्या बढ़ने के बाबत हमारी समझ नहीं है कि वह गलत है बल्कि बच्चों को पैदा करने के बाबत हमारी जो समझ है वह सनातन है। वह यह है कि बच्चे परमात्मा से आते हैं, हमें उन्हें रोकने का कोई हक नहीं है। मेरा मतलब आप समझ रहे हैं न? तीस साल में दूसरे मुल्कों ने, जैसे फ्रांस जैसे मुल्क ने अपनी संख्या थिर कर ली है। आज तो फ्रांस में भी चिंता की यह बात है कि अगर यह संख्या थिर रही तो कहीं यह न हो कि आने वाले पचास वर्षों में उनकी संख्या नीचे गिरनी शुरू हो जाए, वे जितने हैं उससे कम न हो जाएं। अब यह बड़े मजे की बात है कि एक ही पृथ्वी पर हम लोग रह रहे हैं! एक के सामने सवाल है कि हम संख्या कैसे रोकें ! और अभी भी कौमें हैं जिनके सामने सवाल है कि हम अपनी संख्या गिरने से कैसे रोकें ! कहीं वह बिलकुल न गिर जाए। अब पश्चिम में उनको चिंता पैदा शुरू हो गई कि पूरब के लोग तो पैदाइश बढ़ाए चले जा रहे हैं। कहीं सौ साल में ऐसा न हो जाए कि सफेद रंग की जातियां काले रंग की जातियों से इतनी कम पड़ जाएं कि हमारा जीना मुश्किल हो जाए इनके साथ । मेरा मतलब यह है, हम जिस ढंग से सोचते हैं वे ढंग हमारी सारी की सारी जीवन- प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। वे इमिजिएट दिखाई नहीं पड़ते हमें । अब जैसे मैं आपको कहूं, अभी भी करपात्री जाकर गांव में अगर समझाते हैं लोगों को कि यह संतति-नियमन जो है यह धर्म विरुद्ध है । तो गांव के आदमी के समझ में आता है। लेकिन अगर गांव के आदमी को जाकर आप समझाएं कि बच्चे पैदा करना धर्म विरुद्ध है । तो समझने की बात Page 95 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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