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वही बात कर रहा हूं। इधर हमारी कोई साठ प्रतिशत समस्याएं हमारी संख्या से खड़ी हो रही हैं। हम समस्याओं को हल करते चले जाएंगे और संख्या यहां बढ़ती चली जाएगी। हम कुछ भी हल नहीं कर पाएंगे। रोज हम हल करेंगे और रोज नई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। तो साठ प्रतिशत समस्याएं कम से कम सिर्फ नष्ट हो सकती हैं अगर हम संख्या पर एक व्यवस्थित संतुलन उपलब्ध कर लें। जो कि किया जा सकता है। लेकिन लोकतंत्र की धारणा हमारी कि बच्चे पैदा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। वह मुझे गलत दिखाई पड़ती है।
इसलिए जो आप कहते हैं व्हाट फार्म ऑफ गर्वमेंट । तो मेरी दृष्टि में अभी हिंदुस्तान को कोई पचास साल तक लोकशाही की जरूरत नहीं है। अभी हिंदुस्तान को पचास साल तक स्पष्ट रूप से अधिनायकशाही की जरूरत है। कोई उसको कहने को राजी नहीं है, क्योंकि वह शब्द ही अजीब हो गया, अधिनायकशाही की बात ही करना। उन्होंने कहा, यह आदमी खतरनाक है ।
व्हाट अबाउट फॉर्म ऑफ डिक्टेटरशिप डू यू विज्युअलाइज ।
...डिक्टरशिप जैसा कि रूस में बनी ।
पलट देनी चाहिए।
भारत का भविष्य
पलट देनी चाहिए।
एक सर्वहारा का अधिनायकशाही चाहिए। जिसका स्पष्ट ध्यान यह होगा कि हम... ।
आपका ओपिनियन संयुक्त डिक्टेटर्स के लिए क्या है ?
नहीं, जरा भी अच्छा नहीं है। क्योंकि संयुक्त डिक्टेटरशिप कोई सर्वहारा का, कोई कम्युनिटेरीयन डिक्टेटरशिप नहीं है। संयुक्त डिक्टेटरशिप तो राजतंत्र जैसी पुरानी बेहूदी बातें हैं। संयुक्त डिक्टेटशिप की क्या जरूरत है ? डिक्टेटरशिप व्यक्ति की नहीं; विचार की। सोशिएलिस्ट डिक्टेटरशिप से मेरा मतलब है । वह व्यक्ति की डिक्टेटरशिप नहीं है वह। वह असल में मौलिक, एक विचार की डिक्टेटरशिप है। एक विचार की यह स्वीकृति कि इस विचार को समाज में लाना है। और चूंकि समाज का मानस हजारों साल से ऐसा बन गया है कि व्यक्तिगत संपत्ति को वह मानस छोड़ने को राजी नहीं है। हालांकि व्यक्तिगत संपत्ति के कारण ही इसकी सारी समस्याएं खड़ी हो रही हैं।
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